केजरीवाल: लडाका की इमेज से खुश

भारतीय राजनीति में सुपर सोनिक स्पीड से छा जाने वाले राजनीतिज्ञ का नाम है अरविंद केजरीवाल। 123 साल की कांग्रेस और और जनसंघ समेत लगभग 67 साल की भाजपा को चुनौती पेश करने वाले अरविंद केजरीवाल महज 50 साल के हुए हैं।

16 अगस्त 1968 को हरियााणा के हिसार में जन्म लेने वाले केजरीवाल शिक्षा में मेधावी और व्यवहार में बेहद शालीन माने जाते रहे। लेकिन राजनीतिक जीवन में आते ही उन्हें शहरी नक्सली, अराजक और जिद्दी जैसे उपनामों से नवाजा गया।

खडगपुर से बीटेक की डिग्री हासिल कर भारतीय राजस्व सेवा में पहुंचने तक उनका गोल अच्छा काम और परिवार का नाम था। लेकिन जल्दी ही वह सामाजिक कार्यों में सक्रिय हो गए। उनका संम्पर्क मदर टेरेसा की संस्था से हुआ और वहां के बाद नौकरी का त्याग कर फुल टाइम समाज सेवा में लग गए। फरवरी २००६ में, उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया ।

पहले सूचना के अधिकार पर काम किया और बाद में स्वराज आग्रही होकर लोकपाल के आंदोलन में जुट गए। उधर अन्ना का सामाजिक आंदोलन भी चरम पर था। खासकर महाराष्ठªकी जनता में अन्ना का असर बहुत देखा जाने लगा। अरविंद केजरीवाल को अन्ना का साथ मिला और फिर तैयारी शुरू हो गई दिल्ली में एक जोरदार आंदोलन की।

कांग्रेस नीत यूपीए सरकार से जनता त्रस्त थी और भ्रष्टाचार के खिलाफ पूरे देश में माहौल बनने लगा था। अरविंद केजरीवाल अन्ना के सबसे भरोसे के साथी बन गए। और रामलीला मैदान में अन्ना का अनशन शुरू हो गया। इस अनशन में अन्ना को कम केजरीवाल को ज्यादा मीडिया माइलेज मिला। लगातार अनशन से पेट पीठ में धस गया था और हल्की दाढ़ी किसी बलिदानी का लुक दे रही थी।

अन्ना का अनशन इस घोषणा के साथ खत्म हुआ कि लोकपाल की नियुक्ति तक यह सामाजिक संघर्ष जारी रहेगा, लेकिन इसके लिए कोई राजनीतिक दल की स्थापना नहीं होगी। अन्ना का कहना था कि राजनीति में आने के बाद लोकपाल का लक्ष्य पूरा नहीं किया जा सकेगा और सामाजिक आंदोलन कमजोर पड़ जाएगा।

अरविंद ने भी इस आशय के शपथ पत्र पर हस्ताक्ष किया, लेकिन अन्ना के मंच पर से उतरने ही अरविंद ने अपना रास्ता बदल दिया। इस बात की परवाह किए बिना कि लोग उनके इस कदम को अन्ना के साथ धोखा कहेंगे अरविंद ने आम आदमी पार्टी का गठन कर लिया। २ अक्टूबर २०१२ को अरविंद केजरीवाल ने अपने राजनीतिक सफर की औपचारिक शुरुआत कर दी।

उन्होंने बाकायदा गांधी टोपी, जो अब ‘‘अण्णा टोपी‘‘ भी कहलाने लगी है, पहनी थी। उन्होंने टोपी पर लिखवाया, ‘‘मैं आम आदमी हूं।‘‘ उन्होंने २ अक्टूबर २०१२ को ही अपने भावी राजनीतिक दल का दृष्टिकोण पत्र भी जारी किया। फिर क्या था अरविंद के साथ आने वालों कतार लंबी हो गई और अन्ना का आंगन सूना होता गया।

अरविंद केजरीवाल ने राजनीति का वह रास्ता नहीं पकड़ा जिसका अनुसरण बाकी दलों ने किया। नीचे से पार्टी खड़ी कर जनाधार बनाने के बजाय जनाधार वाली पार्टियों की जड़े काट कर अपनी डाल लगाने की राजनीति अरविंद ने शुरू की। एक के बाद एक खुलासे, कहीं सलमान खुर्शीद के खिलाफ प्रेस कांफ्रेस तो कहीं तत्कालिन भाजपा अध्यक्ष नितीन गडकरी के खिलाफ खुलासे।

कांग्रेस की कमजोर नस राबर्ट बढ़ेरा के खिलाफ भी ढ़ेरों आरोप के परचे। बस क्या था मीडिया में अरविदं एंड टीम रातों रात छा गयी। भाजपा और कांग्रेस के मझे हुए नेता आम आदमी पार्टी के नौसिखिओं से चैनल पर उलझते हुए नजर आए।  माहौल अनुकूल था दिल्नी में शीलादिक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार 15 वर्षों से चल रही थी।

मदनलाल खुराना और साहेब सिंह वर्मा के बाद दिल्ली भाजपा में कोई ऐसा कद्दावर नेता नहीं था जो कांग्रेस के राज को उखाड़ फैंकता। अरविंद केजरीवाल ने मौका तार लिया। और सीधे शीला दिक्षित को ही चुनौती दे डाली। इमानदारी के नये नये बने पतीक अरविंद ने वह कारनाम कर दिखाया जो बिरले हीकरते हैं। शीला दिक्षित गोल मार्केट से हार गई।

हार क्या गई बुरी तरह हार गई लगभग 25 हजार वोटों से। अरविद की पार्टी आम अदमी झाझ़ू लेकर निकली और सबको किनारे करती चली गई। आम आदमी पार्टी ने 70 सदस्यीय दिल्ली विधानसभा चुनाव में 28 सीटें जीतकर प्रदेश की राजनीति में खलबली मचा दी। इस चुनाव में आम आदमी पार्टी, भारतीय जनता पार्टी के बाद दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। सत्तारूढ़ काँग्रेस पार्टी तीसरे स्थान पर खिसक गयी।

अरविंद ने जिस कांग्रेस को बुरी तरह हराया उसी कांग्रेस ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को बनाने और आम आदमी पार्टी की सरकार दिल्ली में स्थापित करने में मदद की। कांग्रेस के समर्थन से २८ दिसम्बर २०१३ को अरविंद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। लेकिन यह सरकार १४ फरवरी २०१४ तक ही टिक पाई। लोकपाल की नियुक्ति में सहयोग नहीं देने के कांग्रेस पर आरोप लगाकर अरविंद केजरीवाल ने इस्तीफा दे दिया।

इस बीच राष्ट्रीय राजनीति के फलक पर नरेन्द्र मोदी का जोरदार स्वागत हुआ। मोदी समर्थन, मोदी लहर,मोदी वेभ से लेकर मोदी सुनामी तक का नारा बुलंद किया गया। अरविंद के लिए यह एक बहुत बड़ा सरप्राइज था। कांग्रेस मोदी का मुकाबला नहीं कर पा रही थी। अन्य दल भी बौने साबित हो रहे थे।

आम आदमी पार्टी की भी औकात दिल्ली से बाहर टेस्ट नहीं हुई थी। लेकिन केजरीवाल दम भर रहे थे। बनारस पहुंच कर मोदी का रथ रोकने की जिद पकड़ ली। देश भर से आम आदमी पार्टी के कार्यकत्र्ता माफ करिएगा वालंटियर बुलाए गए। मोदी तो जीत गए लेकिन अरविंद केजरीवाल हारे नहीं। संधष का वह जज्बा दिल्ली में भी जारी रखा।

मोदी सरकार के आगमन के लगभग 10 महीने बाद दिल्ली बिधानसभा का पुनः चुनाव हुआ। बनारस में चुनावी हार का बदला दिल्ली में झंडा गारकर अरविंद केजरीवाल ने लिया। कांग्रेस हवा हो गई। मोदी की भाजपा बंगले झांकने लगी। 70 में से 67 सीटे केजरीवाल जीत गए।
गरीब नागरिकों को भ्रष्टाचार से लड़ने के लिये सशक्त बनाने हेतु उन्हें वर्ष २००६ में रमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गयज्ञं 14 फरवरी 2015 को वे दोबारा दिल्ली के मुख्यमंत्री पद पर आसीन हुए।

नवभारत टाइम्स ने लिखा – ‘‘केजरी सरकारः ऐक्शन, ड्रामा, इमोशन, सस्पेंस का कंप्लीट पैकेज मुख्यमन्त्री बनते ही पहले तो उन्होंने सिक्योरिटी वापस लौटायी। वायदे के मुताबिक बिजली की दरों में 50ः की कटौती कीं। पानी मु्फत किया, स्कूलों को सबसे ज्यादा बजट दिया, मुहल्ला क्लीनिक खुलवाया।

लेकिन केजरीवाल सिर्फ उपलब्धियों से संतुष्ट होने वाले नहीं है। एक्शन और ड्रामा की उनकी राजनीति की पहचान है। सो फिल्म जारी है। रोज एक संघर्ष रोज एक ड्रामा।  सबको चुनौती देने वाले केजरीवाल अपने भीतर से मिलने वाली किसी भी चुनौती को ज्यादा दिन तक टिकने नहीं देते। जिन्होंने भी अपने को उनके समकक्ष खड़ा करने की कोशिश की उनकों उन्होंने बाहर का रास्ता दिखा दिया।

जिस शांति भूषण के एक करोड़ के दान से आम आदमी पार्टी की शुरूआत हुई तो उन्हें तत्काल पार्टी की सदस्यता से मुक्त करने में जरा भी हिचक अरविंद ने नहीं दिखाई। उनके बेटे प्रशांत भूषण को सरे आम बेइज्जत कर निकाला। अपनी वाकपटुता और चुनावी रणनीति के लिए जाने जोन वाले योगेन्द्र यादव हरियाणा चुनाव में जरा मनमानी करते नजर आए कि उन्हें घर बिठा दिया।

अंजली दमानी महाराष्ट्र में अपनी लिडरशिप खड़ी कर रही थी उन्हें वेटिंग लिस्ट मे डाल कर एक्जिट करा दिया। कपिल मिश्रा भी अरविंद के शिकार बने। सबसे ज्यादा आश्चर्य कुमार विश्वास को हुआ होगा जो केजरीवाल को अपना सखा और साथी बताकर कुछ भी कह दिया करते थे ,अरविंद ने उन्हें जड से ही काट दिया।

पहले दिल्ली पुलिस व केन्द्रीय गृह मन्त्रालय के खिलाफ धरना, दिल्ली के लेफ्टिनेण्ट गवर्नर,के साथ परमानेंट पंगा। मोदी के खिलाफ पहले दिन से ही जंग। चेतावनी का उनका अपना अंदाज ।

अरविंद ने 1993 के बैच के आईआरएस अधिकारी सुनीता से शादी की।उन्होंने आयकर अपीलीय ट्रिब्यूनल में आयकर आयुक्त के रूप में 2016 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली। इनके दो बच्चे हैं। केजरीवाल वैसे तो शाकाहारी हैं लेकिन लोगों का भेजा गरम करना उन्हें खूब आता है। अब 2019 की रण भेरी बच चुकी है, देखना है कि आम आदमी के प्रतिनिधि अरविंद अब कौन सा रूप धारण करते हैं।