बारिश के पानी को आँचल में समेटिये

water

शुभम वर्मा

जल संरक्षण के कार्यक्रमों में अक्सर कहा जाता है – नल बंद करो, टंकी से पानी मत बहने दो , नहाने में कम पानी का उपयोग करो, शौचालय का पानी साफ़ करके रिसायकल करो आदि |

यानि उस जल को बचाने की बात हो रही है जिसका लोग उपयोग कर रहे हैं | यह इसी तरह का तर्क है “आपके जूते छोटे हैं , तो पैर काट लो ” | जल जाया न हो इसलिए बचाना भी आवश्यक कदम है, पर उपाय बरसात के जल के संरक्षण में है |

हमारे घरों तक जल(पानी) – नदी, तालाब या जमीन से ही आता है और यदि इनमे जल सूख गया या जल स्तर कम हो गया तो हम कितना भी जल घरों पर बचा लें पर वो समाप्त हो ही जायेगा |

इन सभी स्त्रोतों में जल मुख्यतः बरसात से ही आता है और कुछ जगहों पर हिमालय के बर्फ के पहाड़ों के पिघलने से यह जल प्राप्त होता है |

यह जल सबसे अधिक शुद्ध और साफ़ होता है | यदि बरसात के जल को संरक्षित किया जा सके तो देश की सभी जल सम्बंधित समस्याएं सुलझ सकती हैं |

जब बरसात होती है तो बहुत सारा जल शहर या गाँव में आ जाता है पर इसे सँभालने या संरक्षित करने की उचित व्यवस्था ना होने के कारण यह जल बहकर दूर चला जाता है या समुद्र में मिल जाता है |

कई जगह पर इसी कारण से सूखा पड़ जाता है तो कुछ निचले इलाकों में पानी भरने से बाढ़ आ जाती है | दोनों ही हालातों में काफी नुकसान होता है | सूखे या बाढ़ में सिर्फ मनुष्य की नहीं बल्कि पशु, पक्षी, पेड़ पौधे इत्यादि सभी प्रभावित होते हैं |

आज मराठवाडा और विदर्भ में किसान आत्महत्या के कई किस्से अखबारों में आये दिन छपते रहते हैं |

पर दोनों ही इलाकों को यदि गौर से देखा जाये तो पता चलता है के एक तरफ मराठवाडा में सूखे का कारण बरसात का कम होना है तो दूसरी तरफ विदर्भ में बहुत अच्छी बरसात होने के बाद भी सूखा पढता है |

विदर्भ के गाँवों चंदरपुर तथा सेवाग्राम आदि में जाकर पता चलता है की विदर्भ में बरसात के पानी का संरक्षण ना कर पाना जल संकट का मुख्य कारण है |

विदर्भ के राजगढ़ गाँव के पूर्व सरपंच एवं समाजसेवी चंदू पाटिल जी बताते हैं की –“ यहाँ बरसात अच्छी होती है मगर जल संरक्षण के विषय में जागरूकता ना होने के कारण कई लोग तालाब, कुए या जल शिवार नहीं बनाते , जिसके कारण वर्षा का जल तुरंत वहां से बह जाता है और साल भर किसानो को सूखे का सामना करना पढता है | कुछ गाँव जहाँ जल संरक्षण का काम हो रहा है , वहां सूखे की समस्या नहीं आती |”

इसी तरह मराठवाडा में औरंगाबाद के पास के किनगाँव में लोगों ने जल संरक्षण के लिए कई छोटे छोटे बांध बनाये हैं जिसके बाद बरसात कम होने के बाद भी वहां बाकी गाँव की अपेक्षा पानी अधिक रहता है |

इस गाँव में जल संरक्षण के लिए बांध बनाने में मदद करने वाले सिविल इंजिनियर अतुल चव्हाण जी बताते हैं – “यहाँ पानी की बहुत समस्या होती है |

कई बार २ साल में एक बार बरसात होती है | इसी लिए हम लोगों ने यहाँ छोटे छोटे बांध, जन समुदाय की मदद से सरकार से भी कम लागत में बनवाए और अब ना सिर्फ इस गाँव का जल स्तर बढ़ा है बल्कि किसान भी खुश हैं|”

इस तरह के कई उदाहरण देश भर में हैं जिनसे प्रेरणा ली जा सकती है जैसे अन्ना हजारे जी का गाँव रालेगन सिद्धि आदि |

देश में सबसे अच्छे उदाहरण यदि जल संरक्षण के देखे जाएँ तो उस जगह से आते हैं जहाँ सबसे सूखा प्रदेश है | राजस्थान में सदियों पहले से मरुस्थल होने के कारण जल संरक्षण पर बहुत ध्यान दिया गया है |

यहाँ ना सिर्फ सरकारी योजनाओं में बल्कि लोगों के संस्कारों में जल संरक्षण आ चुका है |

प्राचीन काल में राजस्थान में शहर के बीच जो महल बनाया जाता था उसकी छत तथा दीवारों के ऊपर से नालियाँ बनायीं जाती थी जो किलोमीटर तक लम्बी रहती थी और अंत में जाकर महल के नीचे एक बड़े कुंड में मिलती थी |

जब बरसात होती थी तो इन नालियों के माध्यम से किले या महल की छतों पर मौजूद जल बहता हुआ कुंड तक आता था तथा इसमें इतना जल एकत्रित कर लिया जाता था जो की साल भर तक नगरवासियों के काम आ सके |

इसी तरह सभी घरो की छतों को भी घरों के नीचे बने कुंड से जोड़ा जाता था जिसमे सारा पानी इकठ्ठा होता था |

आज भी राजस्थान में जैसलमेर के ग्रामीण इलाकों में हर घर में एक टांका ( पानी का कुंड) बनाया जाता है, जिसमे बरसात के जल को संरक्षित किया जाता है तथा उस जल का प्रयोग साल भर तक उस घर के लोग करते हैं |

इस तरह के प्रयोगों को सूखाग्रस्त इलाकों तक पंहुचाया जाना चाहिए |

महाराष्ट्र सरकार ने इसी आधार पर “जल युक्त शिवार” योजना प्रारंभ की है| इसमें महाराष्ट्र सरकार 252.२१ करोड़ रुपया खर्चा करने जा रही है|

इस योजना के तहत महाराष्ट्र के हर गाँव में जल युक्त शिवार (छोटे तालाब) बनाए जायेंगे जिससे जलस्तर में सुधार हो तथा वर्षा के जल को संरक्षित किया जा सके |

इसी के साथ महाराष्ट्र सरकार ने “मागेल त्याला शेततळे” योजना प्रारंभ की है जिसमे हर किसान अपने निजी खेत में भी तालाब खुदवा सकता है | यह योजनाएं जलसंरक्षण के क्षेत्र में बेहतरीन पहल हैं|

केंद्र सरकार ने भी पुरानी चली आ रही मनरेगा योजना में बदलाव करते हुए अब इसमें तालाब भी खोदने की इजाजत दे दी है |

इसके तहत राजस्थान, झारखण्ड, उत्तर प्रदेश , महाराष्ट्र आदि में टाँके, तालाब आदि खुदना प्रारंभ हो गए हैं |

बरसात के बाद इन इलाकों में जब यह सभी तालाब भर जायेंगे तो निश्चित तौर पर देश के जलस्तर में सुधार होगा जिसका फायदा देश के किसानो को मिलेगा |

२०१९ तक भारत सरकार ने भारत को खुले में शौच से मुक्त करने का संकल्प भी लिया है, जिसके तहत करोड़ों शौचालय सरकार ने बनवा दिये हैं मगर झारखण्ड, उड़ीसा आदि के कुछ ग्रामीण इलाकों में लोग शौचालय बनने के बाद भी खुले में शौच करते हैं |

कई समाजसेवी संस्थाएं इनकी मानसिकता बदलने का कार्यक्रम चला चुकी हैं मगर मूल समस्या पानी की है |

झारखण्ड के सरायकेला (खरसावाँ) में खुले में शौचालय मुक्त ग्राम बनाने के लिए काम करने वाली एक समाज सेवी संस्था के सुजोय बताते हैं की -” हमने लोगों की मानसिकता बदलने के लिए 6 महीने काम किया तथा सभी लोग इस बात के लिए राजी हैं के खुले में शौच नहीं जाना चाहिए तथा सरकार ने शौचालय भी बनवा दिये हैं |

मगर कुछ आदिवासी इलाकों में लोगों को पीने के पानी के लिए भी ३ किमी दूर तालाब तक जाना पढता है | इतनी दूर से शौचालय के लिए पानी लाने की अपेक्षा यह लोग तालाब के आस पास ही शौच जाते हैं |

इनकी समस्या पानी की पाइपलाइन बिछाने से हल हो सकती है | मगर कई ग्रामीणों को डर है उसका बिल आएगा जो यह अत्यंत गरीबी के कारण चुका नहीं पायेंगे | इस समस्या का हल भी हमें सोचना चाहिए |”

भारत एक विशाल देश है तथा विविधताओं से भरा हुआ है अतः योजनाएं सारे देश में एक जैसी बनाने की जगह, हर जगह के हिसाब से उनके वातावरण तथा जलवायु के अनुरूप बननी चाहिए |

झारखण्ड में इसी तरह से जल संरक्षण हेतु हर ग्राम पंचायत में एक जल संरक्षण समिति बनायीं गयी है जिसमे “जल सहिया” नाम का एक पद बनाया गया |

जल सहिया का अर्थ होता है “जल की मित्र” | जल सहिया गांव में पेयजल व स्वच्छता के लिए जिम्मेवार महिला होती है | यह आवश्यक है कि जल सहिया कोई महिला ही होगी, जो गांव की कोई भी विधवा या विवाहित महिला हो सकती है |

उसे मैट्रिक पास होना चाहिए, उसकी उम्र 25-45 वर्ष के बीच होनी चाहिए| गांव में मैट्रिक पास महिला के नहीं होने की स्थिति में आठवीं पास महिला भी जल सहिया बन सकती है |

जल सहिया को उसके कार्य के परिणाम व प्रदर्शन के आधार पर प्रोत्साहन राशि भी दी जाती है| जल सहिया समुदाय के बीच पेयजल व स्वच्छता के लिए जिम्मेवार होती है |

वह गांव के लोगों को शौचालय के उपयोग के बारे में जानकारी देने का कार्य करती है | खुले में शौच करने से लोगों को होनेवाली हानि से अवगत करना जल सहिया का कार्य है |

विद्यालय और आंगनबड़ी में संपर्क कर बच्चों को साबुन से हाथ धोना, डंडी वाले लोटे का उपयोग करना, शौचालय का उपायोग करना आदि को लेकर जागरूकता लाना उसका काम है |

उसे गांव के लोगों से संपर्क के दौरान जल जनित बीमारियों, कूड़ा-कचरा के निबटान, पेयजल का रख-रखाव, जलस्नेतों के संरक्षण और उसकी सुरक्षा की जानकारी देनी होती है, साथ ही वह बेकार पानी के निबटान के लिए योजना भी बनाती है |

जल सहिया के चुनाव में जलभरवा या पनभरवा को या उनके पारिवारिक सदस्य को वरीयता दी जा सकती है|

जल सहिया ग्राम जल व स्वच्छता समिति की कार्यकारी सदस्य व पदेन कोषाध्यक्ष का कार्य देखती है |, यह पद हर गाँव में एक महिला को दिया जाता है, जो घर घर जाकर जल की उपयोगिता ग्रामीणों को समझाती है तथा जल संरक्षण हेतु सभी को जागरूक करती है |

झारखण्ड में कई जल सहिया इस दिशा में बहुत अच्छा काम कर रही हैं | इसी तरह के मॉडल हर प्रदेश सरकार अपनी अपनी जरूरतों के आधार पर बना सकती है |

महाराष्ट्र में कई बार आदर्श ग्राम के अवार्ड जीत चुके ग्राम हिवरे बाज़ार के पूर्व सरपंच पोपटराव पवार बताते हैं की – “हमारे गाँव में सभी समस्याएं जल संरक्षण के कारण ही हल हुई हैं |

पहले हमने जल संरक्षण की दिशा में काम किये तालाब खोदे , वृक्षारोपण किया , ज्यादा पानी सोखने वाली गन्ने की फसल पर रोक लगायी |

यह सब होने से गाँव का जल स्तर बढ़ा तथा जल स्तर बढ़ने से खेती में फायदा होने लगा | खेती में फायदा होने से गाँव में समृद्धि आई तथा लोगों के पास पैसा आने से उन्होंने शौचालय बनवाए एवं स्कूल और अस्पताल के हालात भी सुधरे |  यह सब कुछ सिर्फ एक जल संरक्षण के कार्य से संभव हो सका |

” इससे यह सिद्ध होता है के हर विकास का हर पहलू एक दुसरे से जुडा हुआ है , एक पहलू को नज़रअंदाज़ करके हम दुसरे पहलू में पुर्णतः सुधार नहीं कर सकते |

अतः सर्वांगीण विकास या समग्र विकास हेतु एक समग्र नीति की आवश्यकता है, जिसमे मनुष्य, पशु , पक्षी, पर्यावरण सभी पहलुओं पर एक साथ काम किया जाए |

शुभम वर्मा एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं | इस लेख में दिए गए बिचार उनके निजस्व हैं ।

शुभम वर्मा एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं | इस लेख में दिए गए बिचार उनके निजस्व हैं ।