आ गई बिहार में बहार,बाहर आ गए ‘ साहेब’

bihar

 

अनिल विभाकर

राजद के बाहुबली नेता शहाबुद्दीन के सामने सरकार सरेंडर बोल गई।खतरे में पड़ गई नीतीश कुमार की कुर्सी। बिहार में बहार आए या न आए ,11 साल बाद ‘सीवान के साहेब’ जमानत पर जेल से बाहर जरूर आ गए।

यह ‘ साहेब’ यानी शहाबुद्दीन के सामने सरकार के सरेंडर करने के कारण संभव हुआ। इसके लिए राज्य सरकार पर राजद यानी लालू का दबाव था। जेल से बाहर आते ही शहाबुद्दीन ने नीतीश के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। कहा नीतीश मेरे नेता नहीं। वे परिस्थितजन्य मुख्यमंत्री हैं । मेरे नेता लालू हैं।

शहाबुद्दीन के इस बयान पर महागठबंधन में बवाल मच गया है। जदयू ने इस पर राजद से सफाई मांगी तो शहाबुद्दीन के समर्थन में राजद के वरिष्ठ नेता रघुवंश प्रसाद सिंह खुल कर सामने आ गए।

कहा मैं तो शुरू से नीतीश को मुख्यमंत्री बनाए जाने के खिलाफ था।वे परिस्थितियों के कारण मुख्यमंत्री भले बन गए मगर यह हकीकत है कि उनका कोई जनाधार नहीं है।

शहाबुद्दीन पर हत्या,अपहरण,रंगदारी और फिरौती के 63 संगीन मामले हैं। दो में उनहें उम्रकैद की सजा मिल चुकी है। सीवान से राजद सांसद रहे शहाबुद्दीन की यह रिहाई पटना हाईकोर्ट से जमानत मिलने के बाद संभव हुई।

हाईकोर्ट में शहाबुद्दीन की जमानत याचिका पर सुनवाई के समय राज्य सरकार के वकील विरोध में खड़े ही नहीं हुए।सब जानते हैं कि सरकारी वकील अदालत में सरकार के रुख का पालन करते हैं।

जाहिर है कि राज्य सरकार की इच्छा शहाबुद्दीन को जेल से आजाद कराने की थी। सरकार की ओर से आपत्ति नहीं की गई तो माननीय न्यायाधीश क्या करते। वे तो कानून से बंधे हैं। बहरहाल शहाबुद्दीन को जमानत मिल गई।

बिहार में महागठबंधन की सरकार बनते ही नीतीश कुमार के एक मंत्री अब्दुल गफूर ने गुपचुप रूप से सीवान की जेल में जाकर शहाबुद्दीन से मुलाकात की थी। अखबारों में यह खबर छप जाने के बाद नीतीश सरकार की काफी किरकिरी हुई।

इसके कुछ दिन बाद लालू यादव ने शहाबुद्दीन को राजद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सदस्य बना दिया। लालू यादव खुद चारा घोटाले में सजायाμता हैं। वे चुनाव नहीं लड़ सकते मगर पार्टी के अध्यक्ष हैं। शहाबुद्दीन को हत्या के मामले में उम्रकैद हुई है। वे भी चुनाव नहीं लड़ सकते।

11 साल से जेल में बंद रहने के बाद भी बिहार के मंत्री जेल में जाकर उनसे मिलते रहे और शहाबुद्दीन जेल में दरबार लगाते रहे।लालू ने उन्हें अपनी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सदस्य बना दिया। माना यही जा रहा है कि लालू ने यह सब उन्हें जेल से आजाद कराने की योजना बनाने के बाद किया ।

शहाबुद्दीन के आतंक के कारण उनके खिलाफ या तो गवाह खड़ा नहीं होता या जो गवाही देता है उसकी हत्या हो जाती है। इसी आतंक के कारण शहाबुद्दीन को कई मामलों में जमानत मिल गई।

जब जदयू-भाजपा गठबंधन की सरकार थी और नीतीश मुख्यमंत्री थे तब सरकार की तेजी और सख्ती की वजह से हत्या के मामले में शहाबुद्दीन को उम्रकैद की सजा हो
गई।

नीतीश सरकार की तेजी और चुस्ती की वजह से ही लालू को चारा घोटाले में सजा हुई।इस समय जो सरकार है उसके मुख्यमंत्री नीतीश भले हों मगर राजद के समर्थन से वे मुख्यमंत्री हैं। इसलिए लालू जो चाहते हैं वही होता है।

लालू शहाबुद्दीन को जेल से आजाद कराना चाहते थे तो नीतीश की एक न चली। राजेश रोशन हत्या कांड में चार्जशीट दाखिल कर दिए जाने के बाद भी मामले की सुनवाई शुरू नहीं हुई। इसका फायदा उठाते हुए शहाबुद्दीन हाईकोर्ट से जमानत लेने में सफल रहे।

इससे पहले के सभी मामलों में उन्हें जमानत मिल चुकी थी। इसमें उन्हें बिहार सरकार का भी अप्रत्यक्ष सहयोग मिला। इसी अप्रत्यक्ष सहयोग के तहत अदालत में सरकार की ओर से जमानत का विरोध नहीं किया गया।

अगर नीतीश चाहते तो शहाबुद्दीन जेल से बाहर नहीं आ पाते। वे सीसीए लगाकर उन्हें जेल से बाहर आने से रोक सकते थे। कभी अपने समर्थक रहे बाहुबली अनंत सिंह के साथ नीतीश ने हाल में ऐसा ही किया। अनंत सिंह की रिहाई से ठीक पहले उन पर सीसीए लगा दिया जिससे उनके लिए जेल के दरवाजे नहीं खुल सके।

अनंत सिंह पर सीसीए लगाने के सरकार के कदम की सराहना हुई मगर यह काम नीतीश ने शहाबुद्दीन के लिए नहीं किया इससे उनके सुशासन बाबू की छवि का नकाब उतर गया।

मुख्यमंत्री बने रहने और देश का प्रधानमंत्री बनने की चाहत में नीतीश कुमार ने जब लालू यादव का दामन थामा तभी से उनकी छवि दागदार होने लगी थी। असैद्धांतिक और अनैतिक गठबंधन करके नीतीश ने महागठबंधन बनाकर बिहार विधान सभा का चुनाव तो जीत लिया मगर में उनकी पार्टी बुरी तरह हार गई।

लालू यादव की पार्टी से गठबंधन के बाद विधानसभा चुनाव में जदयू को सिर्फ 70 सीटें मिलंीं जबकि इससे पहले उसके 115 विधायक थे। इस चुनाव में लालू की पार्टी राजद को 81 सीटें मिलीं। हाशिए पर पड़ी कांग्रेस जिसकी निष्ठा लालू के साथ है उसे 28 सीटें हासिल हुर्इं।

कहने का मतलब यह कि महागबंधन का सबसे बड़ा दल राजद है मगर मुख्यमंत्री राजद का नहीं बल्कि जदयू के नीतीश हैं। ऐसी हालत में नीतीश तभी तक मुख्यमंत्री हैं जब तक लालू चाहेंगे। सुशासन बाबू की यही मजबूरी है। पदलिप्सा जो न कराए।

न चाहते हुए भी नीतीश को लालू की बात माननी पड़ रही है। भाजपा-जदयू गठबंधन की सरकार में जब नीतीश मुख्यमंत्री थे तो उनकी हनक कुछ और थी। इस समय तो उनकी हनक है ही नहीं। हनक है तो लालू यादव की।

लालू जो चाहते हैं करते हैं।भाजपा-जदयू गठबंधन की सरकार में मुख्यमंत्री रहते हुए नीतीश ने अदालती सुनवाई में तेजी लाई। इसके कारण लालू यादव को चारा घोटाले में सजा हो गई अन्यथा अदालतों में मामला लंबा खिंचता रहता और लालू को सजा नहीं हो पाती।

सजा नहीं होती तो वे चुनाव लड़ने के योग्य होते और मुख्यमंत्री बन जाते। शहाबुद्दीन भी 11 साल तक जेल में इसलिए बंद रहे क्योंकि जदयू-भाजपा गठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री नीतीश ने तेजी और सख्ती दिखाई।

इसी सख्ती की वजह से शहाबुद्दीन को उम्रकैद भी हुई। इस समय राजद-जदयू गठबंधन है। राजद विधायकों की संख्या जदयू से अधिक है।इसलिए सरकार में चल रही है तो लालू की।ठेंठ बिहारी भाषा में कहें तो लालू ने नीतीश को लल्लू बना दिया है।

नीतीश कुमार का ड्रीम प्रोजेक्ट है बिहार में शराबबंदी । पूरे देश में अपनी छवि चमकाने के लिए इसे वे किसी भी कीमत पर सफल बनाना चाहते हैं।हालांकि यह एक अच्छा फैसला है।मगर शराब पर प्रतिबंध लगने से सबसे अधिक आथर््िाक नुकसान बिहार में लालू के लोगों को हुआ है।

इस व्यवसाय पर लालू के लोगों का ही कब्जा था। शहाबुद्दीन भी शराबबंदी के सख्त विरोधी हैं। जेल से बाहर आते ही उन्होंने इसका विरोध शुरू कर दिया। प्रारंभ में दिखावे के लिए लालू ने नीतीश के इस फैसले का समर्थन तो किया मगर अंदर -अंदर इसे विफल करने और नीतीश को नीचा दिखाने का काम भी होता रहा।

अब हो यह रहा है कि पूर्ण शराबबंदी के बाद भी बिहार में रोज जहां-तहां शराब की बोतलें और पाउच पकड़े जा रहे हैं। जहरीली शराब से लोग मर भी रहे हैं। इससे नीतीश कुमार की बदनामी हो रही है।

शराबबंदी लागू करने के लिए सरकार ने कड़े कानून बनाए हैं। जिस घर में शराब की बोतल पाई जाएगी उस पूरे घर के लोगों को जेल की हवा खानी पड़ेगी।इसे लागू करने के लिए थानेदारों पर सख्ती बरती जा रही है।

थानेदारों की नौकरी पर खतरे की तलवार लटका दी गई है। इसके कारण अब थानेदारों की चांदी हो गई है।शराब जब्त करने पर थानेदार बरामदगी नहीं दिखाते। हजारों रुपए लेकर मामला रफा-दफा कर देते हैं।

इस तरह यह पुलिस के लिए कमाई का एक नया धंधा बन गया है। नीतीश के गृह जिले नालंदा में एक जदयू नेता के घर शराब पकड़ी गई और उसे जेल भेजा गया तो वहां के डीएम और एसपी ने आबकारी विभाग के उस दारोगा को ही उस जदयू नेता के घर में अवैध शराब रखवा कर फंसाने के आरोप में जेल भेज दिया।

कहते हैं कि लालू ने नीतीश को नीचा दिखाने के लिए ऐसा कराया।इसके विरोध में उत्पाद आयुक्त केके पाठक लंबी छुट्टी पर चले गए।नालंदा जिला प्रशासन की इस कार्रवाई से नीतीश की स्थिति हास्यास्पद हो गई है।

शराबबंदी को लेकर सरकार और राजद के बीच इसी तरह जमकर टकराव चल रहा है और चल रही है तो लालू की। शहाबुद्दीन के जेल से रिहा होने के बाद सूबे में आतंक काफी बढ़ गया है।

महागठबंधन में भी फूट पड़ गई जिससे राजनीति काफी गरमा गई है। जेल से निकलते ही शहाबुद्दीन ने कहा कि मैं जो पहले था ,वही हूं। मैं बदलने वाला नहीं हूं। राजनीति में अब और सक्रियता से भाग लूंगा।

लालू के सुपुत्र और सूबे के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने जमानत मिलने पर सरकार की आलोचनाओं का जवाब देते हुए कहा कि यह सब बेकार की बातें हंै। उन्होंने इसे राजनीति का नया दौर बताया।

सवाल है इस नए दौर का अभिप्राय क्या? इसका अभिप्राय कहीं जंगलराज पार्ट-2 तो नहीं है? राजद से गठबंधन के बाद चुनाव प्रचार के दौरान बिहार में जदयू का यह गीत हर जगह गूंजता था – ‘बिहार में बहार हो,नीतीशे कुमार हो।।।’

नीतीशे कुमार तो हो गए मुख्यमंत्री मगर बिहार में बहार नहीं आई। बहार आई तो राजद और बाहुबली शहाबुद्दीन की।नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने के बाद हत्या,लूटपाट और रंगदारी बढ़ गई।

बिहार चेंबर आफ कामर्स के 90वें वार्षिक समारोह में नीतीश ने उद्योगपतियों से कहा कि उद्योगपति मुट्ठी खोलें,थोड़ी पूंजी यहां भी लगाएं।यहां कानून का राज है।

यह खबर बिहार के अखबारों में पहले पेज की सुर्खियां बनी मगर उसी पहले पेज पर साथ में चार-चार कालम में बाहुबली शहाबुद्दीन की रिहाई और राजधानी पटना में एक डाक्टर की हत्या की भी खबरें थीं। बिहार में कानून के राज का यही मर्म है।

लगता है नीतीश के खिलाफ राजद अब और आक्रामक होगा और उनकी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर खतरा गहरा गया है। तेजस्वी यादव के नए दौर की राजनीति का अभिप्राय संभवत: यही है ।

 

लेखक हिंदी के वरिष्ठ कवि और वरिष्ठ पत्रकार हैं।राष्ट्रीय हिंदी दैनिक जनसत्ता के रायपुर संस्करण और हिंदी दैनिक नवभाारत के भुबनेश्वर संस्करण के संपादक रह चुके हैं । इसके अलाबा हिंदुस्तान के पटना संस्करण में दो दशक तक वरिष्ठ पदों पर काम कर चुके हैं । इस लेख में दिए गए बिचार उनके निजस्व हैं ।