उफ्, ये बैंक नीति ! गरीबों पर सितम, अमीरों पर रहम
राजेश राज
11, 400 करोड़ रुपये के पीएनबी-महाघोटाले ने देश की बैंकिंग सर्विस को गंभीर सवालों के घेरे में ला दिया है।
हर कोई बैंकिंग नीति पर सवाल उठा रहा है। सोशल मीडिया से लेकर अखबार, टेलीविजन चैनल, इंटरनेट, वेब पोर्टल हर जगह यही सवाल किए जा रहे हैं- आखिर, इन अमीरों को हजारों करोड़ रुपये की खैरात किस आधार पर बांटी जा रही है?
तमाम आरोप-प्रत्यारोप के बीच रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट बेहद हैरान करने वाली है।
रिपोर्ट के मुताबिक, देश में हर 4 घंटे में कोई ना कोई बैंक कर्मचारी फ्रॉड करने के जुर्म में सजा पा रहा है। ये डाटा बहुत चौंकाने वाली है।
केंद्र की मौजूदा सरकार एक तरह से चाबुक मार मार कर लोगों को बैंकों में पैसा जमा करने और बैंकिंग प्रणाली में ही लेन-देन करने के लिए बाध्य कर रही है, वैसे हालात में मौजूदा बैंकिंग सिस्टम की ऐसी सड़ी-गली व्यवस्था बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करती है।
क्या ये सच नहीं है कि बड़े कॉरपोरेट घरानों को दिए जाने वाले कर्ज राजनीति से प्रभावित नहीं होते हैं?
इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ऐसे सभी बड़े कर्ज या तो राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल कर स्वीकृत कराए जाते हैं, या फिर बैंक का उच्च प्रभावशाली व्यक्ति के हस्तक्षेप से मंजूर किया जाता है।
बावजूद इसके कि ऐसे बड़े कर्ज हमेशा ही रिस्क जोन में होते हैं। कर्ज लेने वाले की कुल संपत्ति या उनकी रिपेइंग कैपेसिटी का ठीक-ठाक आंकलन नहीं किया जाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो बैंकिंग के आधारभूत नियम को ताक पर रख दिया जाता है।
चलिए, पहले रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की उस रिपोर्ट को देख लेते हैं। आरबीआई ने 1 जनवरी 2015 से 31 दिसंबर 2017 के बीच बैंकों में होने वाली गड़बड़ियों और उस पर होने वाली कार्रवाई का डाटा तैयार किया।
इसके विश्लेषण से ज्ञात हुआ कि इन अवधि में कुल 5,200 बैंक कर्मचारी अथवा अधिकारी फ्रॉड करने के दोषी पाये गए। इन्हें या तो सजा सुनाई गई, या फिर जुर्माना लगाया गया अथवा नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया।
हैरान करने वाली सच्चाई ये भी है कि इस धोखाधड़ी की चार्ट में सबसे उपर देश का सबसे बड़ा बैंक ‘स्टेट बैंक ऑफ इंडिया’ ही है।
फ्रॉड करने के जुर्म में सजा पाने वाले करीब 30 प्रतिशत कर्मचारी (1538) एसबीआई बैंक के थे। 499 मामलों के साथ इंडियन ओवरसीज बैंक और 406 मामलों के साथ सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया तीसरे नंबर है। पंजाब नेशनल बैंक के 184 कर्मचारी इस अवधि में गैर कानूनी गतिविधियों में शामिल पाए गए।
इस आंकड़े ने उस संभावनों को बल दे दिया है, जो सोशल मीडिया पर कई लोग लगा रहे हैं। पंजाब नेशनल बैंक के 11,400 करोड़ रुपये के महाघोटाले के बाद इस बात की खूब चर्चा की जा रहा है कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया का 30,000 करोड़ रुयपे का घोटाला आना भी बाकी है।
बैंको की लोन देने की नीति भी आम आदमी के आक्रोश को बढ़ा रही है। एक समान्य, मध्ययम वर्गीय परिवार का आदमी भी इस बात से भली भांति परिचित होगा कि उन्हें कार, घर या पढ़ाई के लिए लोन लेने में बैंकों के कितने धक्के खाने पड़ते हैं?
छोटे लेनदारों के मामले में लोन देने से पहले उनकी हैसियत को बेहद बारीकी से परखा जाता है। पिछले तीन सालों का आईटी रिटर्न, सैलरी स्लिप, बिजनेस का टर्नओवर।
इससे भी बैंक संतुष्ट नहीं होते हैं तो दी जाने वाली लोन की कीतम का 100 प्रतिशत से ज्यादा मूल्य की कोई संपत्ति गिरवी रख ली जाती है। कई बार गारंटर की व्यवस्था भी करनी होती है। क्या इतनी ही सख्ती अरबपतियों को लोन देते वक्त भी की जाती है। जवाब आएगा- शायद नहीं।
बैंक से जुड़े एक उच्च पदस्थ अधिकारी के मुताबिक, कारपोरेट अथवा उद्योगपतियों को कर्ज अक्सर किसी ना किसी प्रभाव में दिया जाता है, जहां बैंकिंग के कई आधारभूत नियमों को भी शिथिल कर दिया जाता है। इनके लिए प्रोसेसिंग से लेकर इंट्रेस्ट की दर तक कम कर दी जाती है। जबकि, ऐसे कर्ज पहले से ही काफी रिस्क मे होते हैं।
बैंकिंग सिस्टम की इन सारी खामियों की मार देश के आम लोगों पर पड़ती है। हजारों करोड़ रुपये का कर्ज लेकर खुद को दिवालिया घोषित करने के ‘सुनियोजित खेल’ में पैसा तो देश के आम आदमी का ही जाता है। लेकिन कोई किसान, गरीब या आम आदमी 2 से 4 लाख रुपये के बैंक कर्ज चुकाने के दवाब में भी अपनी जान दे देता है।
एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 15 सालों में 2 लाख 70 हजार किसानों ने आत्महत्या की है। 2015 में 3,000 किसानों ने आत्महत्या की। एक अध्ययन के मुताबिक, इनमें से 80 प्रतिशत किसान वो थे जो बैंक से लिए कर्ज को नहीं चुका पाए थे।
जानकर आपको हैरानी होगी कि इन 80 प्रतिशत किसानों के लोन का औसत आकार केवल 2 लाख रुपये था। अब आप कल्पना कीजिए, 11,400 करोड़ रुपये का मतलब देश के किसान और आम आदमी के लिए क्या होता है?
मोदी सरकार के सामने विश्वास का संकट गहराने लगा है। 2014 के चुनाव में भ्रष्टाचार पर सबसे ज्यादा वादे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ही किए थे। खुद को देश का चौकीदार भी बता चुके हैं।
कहना नहीं होगा कि भ्रष्टाचार मुक्त देश करने का सपना ना सिर्फ दिखाया, बल्कि बार-बार दोहराकर लोगों इस उम्मीद को विशाल से विशालतम भी बनाया। अब, उन्हें इसका जवाब देना ही होगा।
तथ्य यह भी है कि पंजाब नेशनल बैंक का महाघोटला 2011 से शुरु हुआ, तब यूपीए की सरकार थी। राजनीति करने वाले इसी बात पर लड़ रहे हैं कि घोटाले की शुरूआत किसके काल में हुई या किसके काल में घोटाला सामने आया, लेकिन क्या ये निर्दयतापूर्ण नहीं है?
जिस देश का हजारों करोड़ रुपये लूट लिया गया, उस देश के कर्णधार इस बकवास बात पर लड़ रहे हैं। क्या ये दोनों ही पार्टियों की जिम्मेदारी नहीं बनती? क्या आम लोगों को इतना बेवकूफ समझ लिया गया है?
कांग्रेस और बीजेपी दोनों पार्टियों की साख दांव पर है। देश और जनहित में बैंकिंस सिस्टम को पारदर्शी, दायित्वपूर्ण और जनहित की ओर उन्मुख करना ही होगा।