केवल किराना नही, सभी रोजगार बचाइए

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डा. भरत झुनझुनवाला

बीते साल 16 हजार करोड़ की बिक्री पर देश के ई-रिटेल कंम्पनियों ने 8 हजार करोड़ का घाटा खाया। 100 रुपए का माल बेचा तो 50 रुपए का घाटा खाया। इस घाटे का एक कारण था कि स्नेपडील, फ्लिपकार्ट तथा एमेजान जैसी कंपनियों द्वारा भारी डिस्काउन्ट दिए जा रहे थे।

इनकी रणनीति थी कि डिस्काउन्ट देकर एक बार खरीददार को अपने दायरे मे ले आऐंगे तो वह बार-बार उन्ही की साइट से माल खरीदेगा।

अपनी पूँजी को दाँव पर लगाकर डिस्काउन्ट दिए जा रहे थे जिसके कारण इन्होंने घाटा खाया। इन डिस्काउन्ट का प्रभाव किराना दुकानो पर पड़ा।

अधिकाधिक संख्या मे खरीददार आनलाइन खरीद करने लगे। किराना दुकानो को इस दबाव से मुक्त करने के लिए बीते समय सरकार ने ई-रिटेल कंपनियों द्वारा डिस्काउन्ट देने पर प्रतिबंध लगा दिया है।

सोच थी कि प्रतिबंध लगाने से किराना दुकानो पर मंडरा रहा खतरा टल जाएगा। ई-रिटेलर अपनी पूँजी को दाँव पर लगा कर ग्राहक पर कब्जा नही कर सकेगा और किराना दुकान को बंद नही करा सकेगा।

आशा थी कि डिस्काउन्ट पर प्रतिबंध लगाने से ई-रिटेलर्स को होने वाले घाटे पर भी ब्रेक लग जाएगा। वे अपनी पूँजी को दाँव पर नही लगा सकेंगे। लेकिन ऐसा नही हो रहा है।

हाल मे आस्क मी नाम की ई-रिटेलिंग कंपनी को अपना धंधा बंद करना पड़ा चूँकि घाटेे बढ़ते जा रहे थे। वास्तव मे ई-रिटेलर्स को जो घाटा लग रहा है उसमे डिस्काउन्ट एक छोटा कारण है।

उनके द्वारा एडवर्टाइजमेंट, ग्राहक के डाटा की गणित, साफ्टवेयर तथा अन्य मदो पर भारी खर्च किए जा रहे है। विषय रिटेल की नई तकनीक का है।

खेत मे पानी का अभाव हो तो फर्टिलाइजर अथवा कीटनाशक पर प्रतिबंध लगाने से कोई अन्तर नही पड़ता है। अथवा छात्र का मन पढ़ाई मे न लगता हो तो टेलीविजन देखने पर प्रतिबंध लगाने से कोई प्रभाव नही पड़ता है।

इसी प्रकार किराना दुकानो की तकनीक पिछड़ गयी हो तो ई-रिटेल द्वारा दिये जाने वाले डिस्काउन्ट पर प्रतिबंध लगाने का कोई प्रभाव नही पड़ रहा है। ई-रिटेल के कई लाभ है – जैसे घर बैठे माल की डिलेवरी, माल का पूरा विवरण, माल की च्वायस, इत्यादि।

मुझे मोबाइल फोन खरीदना था। दुकानो पर गया तो वे यह भी नही बता सके कि फोन मे टार्च है या नही। अंततः मैंने स्मार्टप्रिक्स साइट पर कुछ मोबाइल फोन की तुलना की और किसी ई-रिटेल कंपनी से खरीद लिया।

ऐसी सुविधा किराना दुकाने उपलब्ध नही करा पाती है।  डिस्काउन्ट पर प्रतिबंध लगाने के पीछे सरकार की मंशा किराना दुकान को राहत पहुँचाने की है। किराना दुकानो को कुछ राहत मिली भी है।

लेकिन इस घमासान को बीच मे रोक देने से सुधार के कुछ रास्ते बंद हो रहे है। जैसे चीन की ई-रिटेल कंपनी अलीबाबा द्वारा किराना दुकानो के माध्यम से बिक्री की जाती है।

किराना दुकानों द्वारा आवश्यक माल के आर्डर अलीबाबा को दिए जाते है। अलीबाबा द्वारा माल उन तक पहुँचाया जाता है। ई-रिटेल तथा किराना एक दूसरे के पूरक हो जाते है। सिंगापुर मे दुकानो द्वारा उपलब्ध माल के स्टाक तथा दाम को वेबसाइट पर डाला जा रहा है।

उपभोक्ता द्वारा इंटरनेट पर खोज की जा रही है कि किस दुकान मे उसकी पसंद का माल किस दाम पर उपलब्ध है। इसके बाद उपभोक्ता उस दुकान पर जाकर उस माल को खरीद रहा है।

ई-रिटेल कंपनियाँ भी दुकान के महत्व को समझ रही है। अमरीकी ई-रिटेल कंपनी एमेज़ान द्वारा किताबों की दुकान खोली गई है। ई-रिटेल तथा किराना के बीच चल रहा महायुद्ध अभी निर्णायक नतीजे पर नही पहुँचा है।

उथल पुथल की इस स्थिति मे ई-रिटेल द्वारा डिस्काउन्ट देने पर प्रतिबंध लगाने का अर्थ है कि इस प्रयोग को बीच मे ही रोक दिया जाए। संभव है कि चीन तथा सिंगापुर मे इस प्रयोग से मार्केटिंग का नया माडल बने।

डिस्काउन्ट पर प्रतिबंध लगाने के कारण हम इस नए माडल का लाभ उठाने मे पिछड़ जाऐंगे।

ई-रिटेलर्स द्वारा डिस्काउन्ट पर प्रतिबंध लगाने के पीछे सरकार की दूसरी मंशा रोजगार की रक्षा है। इस मन्तव्य का स्वागत है। परन्तु रोजगार की रक्षा के दूसरे विकल्प भी उपलब्ध है।

देखना चाहिए कि डिस्काउन्ट पर प्रतिबंध लगाना ही रोजगार की रक्षा का श्रेष्ठ उपाय है या नही। मान लीजिए ई-रिटेल डिस्काउन्ट पर प्रतिबंध लगाने से देश का हर परिवार पर 100 रुपए का बोझ पड़ेगा।

जैसे उसे रिफाइन्ड आयल मंहगी खरीदनी प़ड़ेगी चूँकि ई-रिटेल कंपनी डिस्काउन्ट नही दे रही है। उपभोक्ता को किराना दुकान से 300 रुपए मे रिफाइन्ड आयल खरीदना पड़ेगा जिसे ई-रिटेल कंपनी 200 रुपए मे उपलब्ध करा देती।

साथ-2 किराना दुकानो मे कार्यरत देश के एक करोड़ लोगों का रोजगार की रक्षा होगी। इसी तरह यदि पावर लूम पर प्रतिबंध लगा दिया जाए तो देश के हर परिवार पर 50 रुपए प्रतिवर्ष का बोझ पड़ता है।

उन्हे हैन्डलूम का मंहगा कपड़ा खरीदना होगा। मान लीजिए पावरलूम पर प्रतिबंध लगाने से भी एक करोड़ जुलाहों के रोजगार की रक्षा होती है।

यानी एक करोड़ रोजगार की रक्षा करने को ई-रिटेल पर प्रतिबंध का बोझ 100 रुपए तथा पावरलूम पर प्रतिबंध लगाने का बोझ 50 रुपए प्रति परिवार पड़ेगा।

ऐसे मे उचित होगा कि सरकार किराना दुकानो को स्वाहा होने दे और जुलाहों की रक्षा करे चूँकि उपभोक्ता पर भार कम पड़ेगा।

लेकिन यदि पावरलूम पर प्रतिबंध लगाने का भार 200 रुपए प्रति परिवार पड़े तो उचित होगा कि किराना दुकान की रक्षा की जाए और जुलाहो को स्वाहा होने दिया जाए।

अतः देखना चाहिए कि उपभोक्ता पर न्यूनतम भार डाल कर अधिकतम रोजगार की रक्षा किन क्षेत्रो मे हो सकती है। केवल ई-रिटेल पर प्रतिबंध लगाकर किराना की रक्षा करने से बात नही बनेगी चूँकि तमाम दूसरे क्षेत्रो मे रोजगार का भक्षण जारी रहेगा।

प्रतीत होता है कि किराना लाबी सक्रिय है जबकि खेत मजदूर, फोटो कापी मशीन एवं साइकिल रिक्शा चालको की लाबी कमजोर है। इसलिए सरकार का ध्यान किराना पर है।

राजनीतिक दृष्टि से किराना को बचाना सही हो सकता है परन्तु राष्ट्र की दृष्टि से यह उचित नही है चूँकि राष्ट्र मे साइकिल रिक्शा चालको की संख्या ज्यादा है।

अंतिम आकलन इस प्रकार है। ई-रिटेल कंपनियों द्वारा डिस्काउन्ट देने पर प्रतिबंध लगाने के पीछे सरकार की मंशा सही दिशा मे है। परन्तु यह कदम तीन कारणो से उचित नही है।

पहला यह कि किराना दुकानो की रक्षा करना पर्याप्त नही होगा। तमाम दूसरे क्षेत्रो मे आधुनिक तकनीको द्वारा रोजगार का भक्षण जारी रहेगा। यह कदम अकुशल भी हो सकता है।

संभव है कि ई-रिटेल पर प्रतिबंध लगाने से उपभोक्ता पर भार ज्यादा पड़े जबकि रोजगार की रक्षा कम हो। दूसरा कारण यह कि ई-रिटेल तथा किराना के बीच समन्वय एवं साझा व्यापार के कई माडल पर वैश्विक स्तर पर प्रयोग चल रहा है।

इस प्रयोग को भारत मे प्रारंभिक दौर मे ही बंद नही करना चाहिए। तीसरा एवं अति महत्वपूर्ण कारण यह है कि ई-रिटेलरों द्वारा डिस्काउन्ट पर प्रतिबंध लगाने से उपभोक्ता को हानि होगी।

डा. भरत झुनझुनवाला

डा. भरत झुनझुनवाला देश के जानेमाने स्तम्भकार हैं । इस लेख में दिए गए बिचार उनके निजस्व हैं । फोन 8527829777