यूपी में राजनीतिक घमासान , बिसात पर रंग दिखा रहे मोहरे
अनिल विभाकर
उत्तर प्रदेश की राजनीति में इस दिनों बवाल मचा हुआ है।
वहां के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बाहुबली मुख्तार अंसारी को साइकिल से उतार दिया और बहन जी के विश्वस्त स्वामी प्रसाद मौर्य अचनक हाथी से उतर गए। साइकिल पर चढ़ाकर उतारे जाने से मुख्तार अंसारी और उनके भाई अफजाल बेहद नाराज हैं।
वे पहले तो अखिलेश यादव के पक्ष में कसीदे पढ़ रहे थे मगर बुरी तरह अपमानित होने के बाद अब उन्हें चुनाव में औकात बताने की धमकी दे रहे हैं। मुख्तार को साइकिल से उतारे जाने से मुलायम सिंह के कुनबे में भी बवाल मचा है।
दरअसल विधान सभा चुनाव को देखते हुए मुलायम सिंह के निर्देश पर उनके छोटे भाई शिवपाल यादव ने मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल का सपा में विलय कराया था मगर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने महज चार ही दिन में मुख्तार अंसारी और उनके दल को साइकिल से उतार दिया।
हालांकि अखिलेश यादव ने कुख्यात मुख्तार अंसारी को सपा से बाहर करके बिल्कुल सही किया। इससे उनकी छवि अच्छी बनी मगर बेहतर तो यह होता कि मुख्तार अंसारी को साइकिल पर सवार ही नहीं किया जाता।
मुख्तार के भाई अफजाल इससे बेहद बिफरे हुए हैं। उनका कहना है कि समाजवादी पार्टी ने विधान परिषद और राज्यसभा चुनाव में उनकी मदद ली और अब काम निकल गया तो अखिलेश यादव ने उन्हें धोखा दे दिया।
अफजाल ने अखिलेश यादव को अहंकारी बताते हुए कहा कि उन्हें चुनाव में औकात बता देंगे। लगता है उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव बहुत जल्द होने वाला है। ऐसे संकेत हैं कि वहां इसी साल दिसंबर में चुनाव कराए जा सकते हैं। इस विधान सभा की अवधि अगले साल 17 मई तक है।
इससे पहले वहां नई विधान सभा का गठन होना जरूरी है।इसे देखते हुए वहां राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई है। सभी पार्टियां अपनी -अपनी राजनीतिक बिसात बिछाने में लग गई हैं। यूपी की दोनों प्रमुख पार्टियों सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी और मायावती की बसपा में इस समय घमासान मचा है।
मुलायम सिंह की सपा में मुख्यमंत्री अखिलेश सिंह और शिवपाल यादव के बीच ताकत की जोर आजमाइश चल रही है तो बसपा सुप्रीमो मायावती अपने विश्वस्त स्वामी प्रसाद मौर्य के अचानक पार्टी छोड़ने के झटके से बौखलाई हुई हैं।
मुलायम सिंह प्रदेश के कुख्यात माफिया डान मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल का सपा में विलय कराना चाहते थे मगर सपा के युवराज और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के कड़े विरोध के कारण उनकी यह मंशा पूरी नहीं हो सकी।
मुलायम सिंह ने अपने छोटे भाई शिवपाल यादव को आगे कर उनकी उपस्थिति में कौमी एकता दल का विलय तो करा दिया मगर अखिलेश यादव को यह बेहद नागवार लगा जिसके कारण शिवपाल यादव की किरकिरी हो गई।
हुआ यह कि नाराज अखिलेश यादव ने विलय के इस काम में सहयोग करने वाले बलराम यादव को उसी दिन कैबिनेट से बर्खास्त कर दिया जिस दिन सपा में कौमी एकता दल का विलय कराया गया।
सपा के राजकुमार को यह विलय बिल्कुल ही मंजूर नहीं था जबकि शिवपाल यादव कहते रह गए कि उन्होंने यह विलय मुलायम सिंह के निर्देश पर कराया। मामला बिगड़ते देख मुलायम सिंह ने बीच का रास्ता निकाला।
पार्टी के संसदीय बोर्ड की बैठक बुलाकर कौमी एकता दल के सपा में विलय को नामंजूर कर दिया गया।
इसके बाद अखिलेश यादव ने अपने मंत्रिमंडल का विस्तार करते हुए पांच दिन बाद बलराम यादव को फिर कैबिनेट में शामिल कर लिया। उनके साथ चार और मंत्री बनाए गए जिनके शपथग्रहण समारोह में नाराज शिवपाल सिंह शामिल नहीं हुए।
दरअसल चाचा-भतीजे के बीच ताकत की इस जोर आजमाइश में भतीजे अखिलेश यादव चाचा शिवपाल पर भारी पड़े गए। सपा नेता यह भले कह रहे हैं कि पार्टी में सबकुछ सामान्य है मगर मुलायम सिंह के कुनबे में सबकुछ ठीकठाक है यह अभी कहा नहीं जा सकता।
लखनऊ में नेता जी के भाई रामगोपाल यादव के जन्म दिन पर आयोजित समारोह में काफी मान मनव्वल के बाद शिवपाल यादव पहुंचे तो जरूर मगर उनकी नाराजगी छिप नहीं पाई।जन्मदिन समारोह में शिवपाल यादव आए तो जरूर मगर मंच पर बहुत कहने के बाद गए।
प्रदेश की दूसरी बड़ी पार्टी बसपा में भी हालात सामान्य नजर हैं। नेता विपक्ष और पार्टी के कद्दावर नेता स्वामी प्रसाद मौर्य अचानक से उतर गए। उनके पार्टी छोड़ने से मायावती बौखला गई हैं।
वे बहनजी के काफी विश्वस्त थे मगर अचानक उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दे दिया। सिर्फ इस्तीफा ही नहीं दिया , मायावती पर टिकट बेचने , पार्टी के संस्थापक स्व। कांशी राम और अंबेदकर के सपने व सिद्धांतों के खिलाफ काम करने का आरोप भी मढ़ दिया।
बहनजी को यदि तनिक भी यह आभास होता कि स्वामी प्रसाद मौर्य पार्टी छोड़ सकते हैं तो पहले ही उन्हें हाथी से उतार कर बाहर का रास्ता दिखा देतीं।मौर्य के इस्तीफे से बहनजी इस कदर परेशान और बौखला उठीं कि उन्होंने उन्हें गद्दार तक कह दिया।
मायावती ने स्वामी प्रसाद मौर्य पर पलटवार करते हुए कहा कि बसपा में परिवारवाद नहीं चलता। बहनजी ने कहा कि स्वामीप्रसाद मौर्य अपनी बेटी और बेटे के लिए बसपा का टिकट चाहते थे मगर मैंने मना कर दिया। इसके कारण उन्होंने पार्टी छोड़ दी। कहा कि मौर्य ने पार्टी छोड़कर बड़ा उपकार किया।
मैं उन्हें बसपा से निकालने ही वाली थी। जवाब में स्वामी प्रसाद मौर्य ने मायावाती को महागद्दार बताया और कहा कि वे दलित की नहीं ,दौलत की बेटी हैं। बसपा का टिकट बेचकर मायावती अंबेदकर और स्व।कांशीराम के साथ गद्दारी कर रही हैं। मायावती दलितों का भला नहीं चाहतीं।
मायावती ने कहा कि बसपा से निकाले गए लोगों का राजनीतिक जीवन समाप्त हो जाता है। इस पर मौर्य ने कहा कि मायावती अब कभी उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री नहीं बन पाएंगी। उनका यह सपना अब धरा का धरा रह जाएगा। उन्हें मैं बता दूंगा कि राजनीति कैसे की जाती है।
पहले तो मायावती को लग रहा था कि मौर्य बसपा छोड़कर सपा में शामिल होंगे।इसलिए कहा कि सपा उनके लिए सही पार्टी है। वहां परिवारवाद चलता है। बसपा में परिवारवाद के लिए कोई जगह नहीं है। मगर मौर्य अब तक किसी दल में शामिल नहीं हुए हैं।
लगता है सपा में बात बनी नहीं इसलिए मौर्य ने कहा सपा गुंडों की पार्टी है।लगभग यही बात मायावती भी कहती हैं। मायावती ने मुख्तार अंसारी के कौमी एकता दल के सपा में विलय रद्द किए जाने को नाटक बताया और कहा कि यह गुंडों से गठजोड़ की सरकार है।
मौर्य भाजपा नेताओं से भी मिल चुके हैं। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से भी मुलाकात कर आए हैं मगर वे अपने पत्ते अभी खोलना नहीं चाहते। स्वामी प्रसाद मौर्य जनाधार वाले नेता हैं। उनके कारण बसपा को कार्फी लाभ हुआ। उनके जनाधार के कारण ही
बसपा सुप्रीमो मायावती तिलमिलाई हुई हैं।
यदि स्वामी प्रसाद मौर्य का कोई जनाधार नहीं होता तो वे उनकी परवाह करती ही नहीं। इतना तो तय है कि उनके पार्टी छोड़ने से बसपा को तगड़ा झटका लगा है। मौर्य जिस दलित वर्ग से आते हैं,उत्तर प्रदेश में उसका अच्छा – खासा प्रभाव है। दलित वोटों के कारण प्रदेश में बसपा अगले विधान सभा चुनाव में सरकार बनाने के सपने देख रही थी मगर मौर्य के अलग होने से मायावती का यह राजनीतिक गणित अचानक गड़बड़ा गया।
बहनजी की तिलमिलाहट की यही वजह है। इस बीच यूपी में भाजपा नेताओं की भी चुनावी सक्रियता काफी बढ़ गई है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह लगातार वहां सभाएं कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे वहां बढ़ने वाले हैं। भाजपा नेताओं ने
अखिलेश सरकार पर हमले तेज कर दिए हैं।
मथुरा कांड,कैराना से बहुसंख्यकों के पलायन और प्रदेश में अपराधियों के आतंक के मुद्दे को लेकर अमित शाह मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पर तीखे हमले कर रहे हैं। इस हमले में वे लक्ष्मण रेख तक की परवाह नहीं कर रहे।भाजपा को लगता है कि प्रदेश में बसपा कमजोर हो चुकी है और सपा सरकार अपने कुशासन के कारण दुबारा सत्ता में नहीं आ पाएगी।
पांच राज्यों के हालिया विधान सभा चुनावों में मिली कामयाबी से उत्साहित भाजपा नेताओं ने इसीलिए उत्तर प्रदेश में सत्ता हथियाने के लिए बिसात बिछा दी है। यदि स्वामी प्रसाद मौर्य भाजपा में शामिल होते हैं तो इससे उसे प्रदेश में एक मजबूत दलित नेता मिल जाएगा।
कल्याण सिंह के राज्यपाल बनाए जाने के बाद भाजपा को मजबूत दलित -पिछड़े नेता की दरकार भी है। फिलहाल सपा,बसपा और भाजपा तीनों पार्टियां सरकार बनाने का सपना देख रही हैं मगर इतना तो कहा ही जा सकता है कि मौर्य के अलग होने से प्रदेश में बसपा की स्थिति पहल से बहुत कमजोर हो गई है। और समाजवादी पार्टी को सरकार में होने के कारण जनता को अपने कामों का हिसाब देना पड़ेगा।