कहीं पाक की तरह बांग्लादेश भी टेरर एक्सपोर्टर न बन जाए!

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विक्रम उपाध्याय

दो जुलाई 2016 को ढांका के दि होली आर्टिजन बेकरीे में भारत की बेटी तरुषी जैन समेत 20 नागरिकों की मौत के लिए जिम्मेदार आईएस समर्थक स्थानीय आतंकवादी हो या फिर पाकिस्तान की आईएसआई के एजेंट, बांग्लादेश अब इस बात से इनकार नहीं कर सकता, उसके घर में अब आतंकवाद पनाह ले चुका है और यह स्थिति भारत के लिए बेहद खतरनाक हो गई है।

इसके पहले भी बांग्लादेश में कई ऐसी घटनाएं घट चुकी थी, यदि शेख हसीना की सरकार समय रहते इस पर काबू ना पा सकी तो बांग्लादेश भी पाकिस्तान की तरह आतंकवाद का गढ़ बन जाएगा।

अभी तक हसीना सरकार इसे कानून व्यवस्था के नजरिये से ही देख रही थी। जबकि एक के बाद एक लगातार आतंक की घटनाएं घटित हो रही हैं।

बांग्लादेश की यह घटना पूरी दुनिया के लिए चिंता का कारण बन गया है। सस्ती लेबर, आसानी से मिल रहे कच्चे माल और चावल, चाय और कपड़ा उद्योग के क्षेत्र में बांग्लादेश की बढ़त के कारण दुनिया भर के विदेशी निवेशक आकर्षित हो रहे थे।

भारत के बाद बांग्लादेश बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए चुनींदा जगह बन गई थी। शेख हसीना के सत्ता में आने के बाद बांग्लादेश में प्रति व्यक्ति आय भी बढ़ गई थी।

परंतु ढांका के आर्टिजन बेकरी हमले ने निवेशकों का विश्वास डिगा दिया है। मूडी का भी मानना है कि इससे बांग्लादेश का नुकसान होगा। यही कारण है कि अमरीका की खुफिया एजेंसी एफआईबी जांच में हसीना सरकार को मदद करने मं लगी है।

वह 17 अगस्त 2005 का दिन था जब बांग्लादेश में एक साथ 300 जगहों पर 500 बम धमाके हुए। सुबह साढ़े ग्यारह बजे से लेकर दिन 12 बजे तक लगातार विस्फोट ने पूरी दुनिया को हिला दिया। यह बांग्लादेश में अलकायदा के प्रवेश की घंटी थी।

तब से हमारे पड़ोसी देश में इस्लामिक आंतकवाद का पौधा लगातार बड़ा होता चला जा रहा है।

2005 से लेकर हाल के दिनों तक बांग्लादेश में 358 नागरिक, 31 सुरक्षा बल और 242 आतंकवादी मारे जा चुके हैं।

यह आकड़ा सिर्फ आंतकवादी कार्रवाईयों में मारे गए लोगों की है, लेकिन बांग्लादेश की समस्या सिर्फ आईएसआईएस या अलकायदा का बढ़ते प्रभाव से नहीं है, बल्कि असली समस्या देश के अंदर ही पनप रहे उन उग्रवादी गुटों को लेकर है जो बांग्लादेश में गैर मुस्लिम नागरिकों ना सिर्फ रोज मार रहे हैं, बल्कि जबरन धर्मांतरण कर अल्पसंख्यकों का सम्मूल नाश करने में लगे हैं।

बांग्लादेश का सबसे खतरनाक आतंकवादी संगठन जमात ए इस्लामी है और कैफे घटना से पहले लगातार उसके आतंकवादियों और बांग्लादेश पुलिस के साथ मुठभेड़ की खबरें आती रहीं हैं। जमात ने फरवरी 2013 से बेहद खतरनाक रूख अख्तियार कर लिया है।

28 फरवरी 2013 को जब इसके नेता देलवर होसैन सईदी को फंासी की सजा सुनाई गई तभी से जमात और इसकी छात्र इकाई इस्लामी छात्र शिबिर ने तहलका मचा कर रख दिया है।

हिंदुओं के मंदिर लगभग रोज ही जलाए जा रहे हैं, सड़कों पर गाडि़या लूट ली जा रही हैं। नोआखली, बलबंधा, रंगपुर, सिलहट छपनवाबगंज और बोगड़ा में सैकड़ों मंदिरों को जला दिया गया और हजारों हिंदुओं को वहां से भगा दिया गया।

जमात ए इस्लामी बांग्लादेश में वहीं किरदार निभाने की कोशिश कर रहा है तो अरब में मुस्लिम ब्रदरहुड निभाता है। वह बांग्लादेश में लोकतंत्र के बजाय शरियत कानून लागू करने के लिए जिहाद कर रहा हैं।

इस संगठन ने हर उस शख्स को मार डाला या मार डालने की कोशिश की जिसने इस्लाम या अल्लाह की शान में कुछ भी कहा या सुना।

इस इस्लामिक आतंकवादी संगठन ने पिछले तीन साल में वैसे 70 लोगों को मार डाला है जिन्होंने बांग्लादेश में धर्मनिरपेक्षता की बात की, जिन्होंने नास्तिकता के समर्थन में कोई ब्लाग लिखा या जो गैर इस्लाम से इस्लाम में आने का विरोध किया।

जाहिर है इस्लाम के विरोध का समर्थन करने वाले अपने ही नागरिकों का संरक्षण हसीना सरकार नहीं कर पा रही है।

इस्लामिक आंतकवादियों पर कहर बन कर टूटने के बजाय शेखहसीना यह संदेश देने के प्रयास में लगी हैं कि बांग्लादेश में आईएस की कोई पहुंच नहीं है, और ढाका कैफे के आंतकी स्थानीय हैं। लेकिन 5 जुलाई को ही आईएसआईएस ने एक वीडियो जारी कर बांग्लादेश कत्लेआम का जश्न मनाया और यह चेतावनी दी कि ऐसे कई और वारदात होंगे।

बांग्लादेश की सरकार भले ही इस हिंसा को राजनीतिक हिंसा का नाम दे रही हैं।

यदि ऐसा है तो भी शेख हसीना को यह तय करना पड़ेगा कि इस्लाम बहुत इस राज्य में वह बंगाल के उदार चरित्र को बरकरार रखते हुए इस्लाम को एक सामाजिक और भाईचारे वाले मजहब के रूप में पेश करना है या फिर इस्लामिक चरमपंथियों के सामने हथियार डाल देना है।

यदि दूसरी स्थिति की संभावना ज्यादा बनती है तो पाकिस्तान की तरह बांग्लादेश भी भारत, अफगानिस्तान और नेपाल जैसे देशों में आंतकवाद का निर्यात करने वाला देश बन जाएगा।