जियो के बाद एयरसेल से विलय और दुनिया मुट्ठी में

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विक्रम उपाध्याय

कर लो दुनिया मुट्ठी में, और सहवाग का अपनी मॉ से रिलायंस के मोबाइल से बात करने के बाद जड़ा वह छक्का। बहुत कम लोगों को याद होगा।

2002-2003 का यह रिलायंस का प्रचार काफी दिनों तक जुमले के रूप मंे उपयोग किया जाता रहा।

लेकिन अब उसी जुमले को हकीकत में बदलने के लिए धीरूभाई अंबानी के दोनों बेटे मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी नए सिरे से रणनीति बना रहे हैं और भारत के संचार उद्योगों पर अपनी पकड़ बनाने की राह पर निकल पड़े हैं।

वर्ष 2002 में भारत सरकार के तत्कालीन संचार मंत्री प्रमोद महाजन ने अचानक टेलीकॉम नीति में ऐसा परिवर्तन किया कि रातों रात रिलायंस कम्यूनिकेशंस बिना किसी मेहनत मशक्कत के ही टेलीकॉम उद्योग की स्टार कंपनी बन गई।

उसके पहले श्रेणियों में विभाजित टेलीकॉम सर्किल और भारी भरकम लाइसेंस फीस से परेशान कंपनियां किसी भी तरह अपने आप को जीवित रखे हुई थी।

स्वर्गीय प्रमोद महाजन ने जब देश में यूनीफाइड टेलीकॉम नीति की घोषणा की तो यह कहा गया कि यह उनकी धीरूभाई अंबानी को श्रद्धांजलि है।

लेकिन बीतते वक्त के साथ टेलीकॉम बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ी और शुरूआती बढ़त के बाद रिलायंस कम्यूनिकेशंस जिसे आज हम ऑरकॉम भी कहते हैं, लगातार पिछड़ती चली गई और अब यह ग्राहकों और आमदनी के लिहाज से चौथे पायदान पर खड़ी है।

वक्त फिर करवट ले रहा है। एक लाख करोड़ का निवेश कर जियों के जरिये मुकेश अंबानी और ऑरकॉम एयरसेल के जरिये अनिलअंबानी फिर से टेलीकॉम उद्योग की रेस में आगे निकलने की होड़ में शामिल हो गए हैं।

यह फिर से वक्त ही बताएगा कि अलग-अलग हो चुके दोनों भाइयों के मिलन का गवाह बना टेलीकॉम उद्योग इनके इशारे पर कहां तक चल पाता है।

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पिछला पखवाड़े, जहां जियो के डाटा प्लान और मुफ्त कॉल की खबरों से बाजार गर्म रहा तो वहीं इस पखवाड़े ऑरकॉम और एयरसेल के विलय की खबरें छाई हुई हैं।

हालांकि आरकॉम और एयरसेल के बीच विलय की कोशिशें पिछले एक साल से चल रही हैं, लेकिन यह विलय की घोषणा अब जाकर हुई है।

उम्मीद है कि विलय की प्रक्रिया 2017 के मार्च तक पूरी हो जाएगी। इस विलय के बाद जो नई कंपनी बनेगी उसमें रिलायंस और एयरसेल दोनों की 50/50 फीसदी की भागीदारी होगी।

विलय के बाद इस कंपनी के पास उम्मीद है कि 20 करोड़ से अधिक ग्राहक होंगे और यह तीसरे नंबर पर खड़ी कुमार मंगलम बिड़ला की कंपनी आइडिया को कड़ी टककर देगी।

दोनों कंपनियां अपने अपने कर्जे को कम करेंगी और बाजार से इक्विटी या हिस्सेदारी के रूप में एक अरब डॉलर का निवेश प्राप्त करने की कोशिश करेंगी।

ऑरकॉम इसके पहले रूसी कंपनी श्याम टेलीकॉम की एमटीएस ब्रांड का अधिग्रहण कर चुकी है और उसके डाटा सर्विस ग्राहकों को अपने पाले मंे कर चुकी है।

आरकॉम देश के 22 टेलीकॉम सर्किल में से 14 सर्किलों में अपना नेटवर्क बिछा चुकी है और वह सरकार से नये और बैंडविथ भी खरीद रही है।

चूंकि अपने देश में अब टेलीकॉम सेक्टर में 100 फीसदी विदेशी निवेश की मंजूरी है इसलिए ऑरकॉम को लगता है कि कर्ज कम कर हिस्सेदारी बेचना अब ज्यादा आसान होगा और इसके लिए विदेशी निवेशकों से उनकी बात भी चल रही है।

चीन के बाद दुनिया का सबसे बड़ा टेलीकॉम ग्राहकों वाले देश में आने वाले दिन संचार व्यवसाय के लिए गोल्ड माइन सिद्ध होने वाले हैं। जहां टेलीफोन उपभोक्ताओं की संख्या 100 करोड़ और इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों ग्राहकों की ंसख्या 25 करोड़ पहुंच चुकी है।

इसलिए बाजार पर कब्जे के लिए कंपनी का मजबूत होना और लाभदेयता बढ़ाने के लिए कर्ज और पूंजी का अनुपात बेहतर होना जरूरी है। ऑरकॉम और एयरसेल के बीच विलय की कहानी भी इन्हीं दो धुरियों पर घूम रही है।

इस समय अनिल अंबानी कीऑर काम पर लगभग 45 हजार करोड़ का कर्ज है तो मलेशियाई कंपनी मैट्रिक्स की सब्सिडियरी एयरसेल पर 20 हजार करोड़ रुपये की।

दोनों कंपनियों के बीच विलय के बाद यह माना जा रहा है कि नई कंपनी के उपर सिर्फ 30 हजार करोड़ का कर्ज रह जाएगा।

विलय से पहले एयरसेल 14 हजार करोड़ रुपये का कर्ज चुका देगी, जो संभवतः ऑरकॉम से उसे प्राप्त होगा।

खबर तो यह भी आ रही है कि अनिलभाई अंबानी अपने टॉवर बिजनेस को बेचकर ऑरकॉम को भी कर्ज मुक्त करने की कोशिश करेंगे।

अनिलभाई अंबानी ने पहले ही यह घोषणा कर दी है कि विलय प्रक्रिया से उनका टावर व्यवसाय और ऑप्टीकल फाइबर ढ़ाचा सेवा को अलग रखेंगे।

बाजार विश्लेषकों का मानना है कि ऑरकॉम और एयरसेल के विलय के बाद बनने वाली नई कंपनी की सालाना आय 24 हजार करोड़ रुपये से भी अधिक हो जाएगी।

विलय के बाद ऑरकॉम एयरसेल के पास लगभग 20 फीसदी स्पेक्ट्रम होंगे और यह देश में वायरलेस संवाद के अलावा थ्रीजी और फोरजी की सेवाएं भी प्रदान कर सकेंगी।

चूंकि आने वाले दिनों में बाजार में और प्रतिस्पर्धा बढ़ने वाली है और एयरटेल व वोडाफोन जैसी कंपनियां अपने ग्राहकों को हर हाल में अपने साथ बनाए रखने के लिए किफायती टेरिफ की घोषणा करने वाली हैं, वैसे में रिलायंस के पास एमटीएस और एयरसेल के इंफ्रास्ट्रक्चर और ग्राहकों की बड़ी संख्या होने का लाभ मिलेगा और यह प्रतिस्पर्धा में टिकी रह सकेंगी।

मामला सिर्फ ग्राहकों के बीच बने रहने का ही नहीं है, बल्कि इक्विटी बाजार और अंतरराष्ट्रीय निवेशकों को भी लुभाने का है।

इस समय ऑर कॉम का शेयर मुंबई स्टॉक एक्सचेंज मंे लगभग 87 रुपये का चल रहा है जिसे काफी अच्छा मूल्य माना जा रहा है। यह मूल्य और बाजार मूल्यांकन रिलायंस को नई कंपनी के शेयर उतारने में काफी मददगार होगा।

रिलायंस एयरसेल के साथ विलय के बाद बाजार से एक अरब डॉलर का निवेश प्राप्त होने की उम्मीद कर रही है।

इस समय ऑरकॉम का बाजार मूल्यांकन लगभग 24 हजार करोड़ रुपये है, लेकिन एयरसेल के साथ विलय के बाद की इसकी पूंजी 65 हजार करोड़ रुपये की होने का आकलन है।

यदि जियो को भी इसमें शामिल कर ले तो रिलायंस जियो, ऑरकॉमएयरसेल की संयुक्त पूंजी एक लाख 65 हजार करोड़ की हो जाएगी जो भारत का सबसे बड़ा टेलीकॉम समूह कहलाएगा।

उल्लेखनीय है कि जियो के साथ पहले ही ऑरकॉम की साझेदारी है और ऑरकॉम के नेटवर्क पर जियो की डाटा सेवा भी उपलब्ध होगी।