नेता और पार्टियों के लिए कैसी रही 2017

प्रधानमंत्री मोदी

जीतेन्द्र तिवारी

वर्ष 2016 जाते जाते कई कसैले अनुभव दे कर गया था। नोटबंदी के कारण देश में हाराकिरी मची हुई थी और उसके कारण चारो तरफ असमंजस का वातावरण बन गया था।

पर 2017 के आगमन के साथ नोटबंदी से उपजी तत्कालिक समस्याएं दूर होने लगी थी और उसके राजनीतिक फायदे नुकसार के आकलन में विशेषक्ष माथापच्ची में उल-हजय गए थे।

यदि यह कहे तो नोटबंदी के गर्भ से नये राजनितक समीकरण का जन्म हुआ, गलत नहीं होगा। 500 और 1000 के नोट को वापस लेने का प्रधानमंत्री का फैसला साहसी करार दिया गया और काले धन से लड़ने की उनकी अदम्य इच्छा शक्ति के रूप में इसे देखा गया।

नरेन्द्र मोदी के इस फैसले ने उन्हें तो तत्काल दो लाभांश दिए उनमें उत्तरप्रदेश में भाजपा की रिकार्डतोड़ जीत और बिहार में नीतिश कुमार का मोदी को पहले समर्थन और फिर बाद में भाजपा के साथ मिलकर सत्ता परिवर्तन।

इतना ही नहीं वर्ष 2017 ने भाजपा को कई अनोखे उपहार दिए ओर प्रधानमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष के रूप में अमित शाह का इकबाल और बुलंद किया।

बहुमत न मिलने के बाद भी भाजपा ने गोवा ओर मणिपुर में सरकार बना लिया और उत्तराखंड में धमाकेदार जीत दर्ज की। पंजाब में दस साल तक अकाली के साथ सरकार चलाने के बाद भाजपा विपक्ष में आ बैठी, लेकिन पार्टी को इसका कोई खास मलाल नहीं रहा।

भाजपा के लिए वरदान

वर्ष 2017 भाजपा के लिए जहां वरदान साबित हुआ वहीं कई विपक्षी पार्टियों के लिए अशुभ भी। दिसंबर 2016 में जयललिता के देहांत के बाद दक्षिण की राजनीति में भूचाल सा आ गया।

एक तरफ डीएमके में परिवारिक कलह चरम पर पहुंच गई और अंततः स्टालिन को कार्यवाहक प्रमुख बनाया गया, पर अलागिरी को यह मंजूर नहीं हुआ और रस्साकशी आज भी जारी है।

अम्मा के निधन के बाद पनिरसेल्लवम को मुख्यमंत्री तो बना दिया गया, लेकिन साये की तरह अम्मा के साथ दशकों से जुड़ी रही शशिकला को यह मंजूर नहीं था, सत्ता संघर्ष अचानक तेज हो गया, लेकिन भ्रष्टाचार के मामले में शशिकला के जेल जाते ही थोड़े दिन के लिए इस संघर्ष को विराम लग गया।

लेकिन 2017 ने जाते जाते इस बु-हजयी राख से अचानक चिंगाड़ी भड़का दी, अम्मा की परंपरागत सीट आरकेनगर से शशिकला के भतीजे टीटी दिनाकरण जीत गये, एक बार फिर एआईडीएमके के नेतृत्व को लेकर संग्राम शुरू हो गया।

भाजपा का अश्मेध घोड़ा भागता चला गया। फरवरी मार्च 2017 में पंजाब के अलावा चुनाव में गये सभी राज्यों को जीतने के बाद अब बारी राष्ट्रपति भवन में किसी अपने को बिठाने की थी।

तमाम अटकलों और अनुमानों को धत्ता बताते हुए प्रधानमंत्री मोदी की टीम ने तब के बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविद को मैदान में उतारा और बिना किसी हिला हवाले के 25 जुलाई 2017 को उन्हें देश के प्रथम नागरिक होने का सौभाग्य प्राप्त हो गया। उसके तुरंत बाद भाजपा के पूर्व अध्यक्ष वेकैंया नायडू को उपराष्ट्रपति पद पर विराजमान करा दिया गया।

2017 में भाजपा ने सभी प्रमुख संवैधानिक पदों पर अपने खाटी कार्यकर्त्ताओं को पदास्थापित कर एक नया मील स्तंभ बना दिया, जिसे आने वाले कई दशकों तक कोई हिला नहीं पायेगा।

भारतीय राजनीति में इंदिरा युग के बाद पहली बार भाजपा के रूप में कोई दल इस तरह रोब और रूआब के साथ भारत के पटल पर उभर कर सामने आया।

भाजपा ने वर्ष 2017 की शुरूआत जिस आागज से शुरू की थी इसका अंत भी उसी शानदार अंजाम से कर रही है। विपरीत परिस्थितियों के बावजूद गुजारात का चुनाव जीत गये ओर हिमाचल में बिना किसी कष्ट के अपार बहुमत ले आए। यदि भाजपा के लिए वर्ष 2017 खास रहा तो कांग्रेस के लिए भी यह वर्ष कम महत्वपूर्ण नहीं रहा।

कांग्रेस में एक नया जोश

हालांकि चुनावी सफलता सिर्फ पंजाब तक सीमित रही, लेकिन राजनीतिक रूप से कांग्रेस में एक नया जोश इस वर्ष आया है। सोनिया गांधी युग का पटाक्षेप हो गया और राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में विराजमान हो गये।

वर्ष 2017 को सिर्फ कांग्रेस अध्यक्ष के बदले जाने के वर्ष के रूप में नहीं देखा जाएगा, बल्कि 2019 के लिए भाजपा से मुकाबले के लिए तैयार होती पार्टी के रूप में कांग्रेस को देखा जाएगा।

गुजरात में हार के बावजूद राहुल गांधी के नेतृत्व को एक विश्वसनीयता मिल गई है। अभी तक उन्हें एक अगंभीर राजकुमार के रूप में ही देखा जाता रहा, लेकिन गुजरात में उनकी सक्रियता और पार्टी के साथ नये लोगों को जोड़ कर परिणाम हासिल करने की उनकी योग्यता का परिचय पहली बार लोगों के सामने आया है। कांग्रेस के लिए यह बहुत बड़ी उपलब्धि है।

सपा, बसपा, वामपंथी दलों और आम आदमी पार्टी के लिए वर्ष 2017 भुला देने वाला वर्ष है। क्योंकि इस वर्ष इन सभी पार्टियों ने बस खोया है। इस वर्ष समाजवादी पार्टी तो सिर्फ सत्ता से गई, बसपा तो लोगों के मन से ही उतर गई।

विधानसभा चुनाव के बाद मायावती के राजनीतिक अस्तित्व पर ही सवाल खड़े होने लगे थे, भला हो स्थानीय निकाय चुनावों का जहां उत्तप्रदेश में बसपा के दो मेयर जीत कर आ गए और मायावती की लाज बच गई।

आम आदमी पार्टी को निराशा

देखा जाए तो सबसे ज्यादा निराशा आम आदमी पार्टी को इस वर्ष मिली है। पंजाब में सरकार बनाने का हल्ला मचाने वाले अरबिंद चुनाव के बाद चारो खाने चित्त मिले और गोवा ने रही सही हवा निकाल दी और अब गुजरात के चुनाव में वे बंगले -हजयांकते नजर आए। लालू यादव और उनका राष्ट्रीय जनता दल कभी भी वर्ष 2017 को याद नहीं करना चाहेगा।

आम आदमी पार्टी पहले बिहार की सत्ता से बेदखल हुए, फिर ईडी, सीबीआई और इनकम टैक्स के -हजयमेले में चक्कर खाते नजर आए और इस वर्ष के अंत में खुद लालू यादव जेल बैरेक में पहुंच गए।वर्ष 2017 ने लालू प्रसाद यादव को राजनीति के बाजीगर से पिटे प्यादे का खिताब दे दिया।

वर्ष 2017 जहां प्रधानमंत्री मोदी ओर उनकी पार्टी के लिए उपलब्ध्यिं भरा वर्ष रहा वहीं जाते जाते इस वर्ष ने उनके लिए चुनौतियों का सृजन भी कर गया। पार्टी के लिए अच्छे दिन की असली परीक्षा वर्ष 2018 में होने वाली है।

राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसग-सजय़ में होने वाले विधानसभा चुनाव भाजपा नेतृत्व के लिए लोहे के चने साबित हो सकते हैं। गुजरात में कांग्रेस के लिए प्रमुख रणनीतिकार की भूमिका निभाने वाले अशोक गहलोत और युवा नेता सचिन पायलट ने अच्छी घेराबंदी कर ली है। हाल ही में हुए स्थानीय चुनाव में भाजपा को हार का स्वाद मिल चुका है।

युवा नेता सूरमा बन उभरे

मध्यप्रदेश और छत्तीसग-सजय़ में तीन बार से लगातार चुनाव जीत रही भाजपा के लिए चौथी बार वही सफलता दोहराना काफी मुश्किल दिख रहा है। राष्ट्रीय स्तर पर जहां राहुल गांधी की कांग्रेस चुनौती बन कर सामने आ रही है वहीं स्थानीय स्तर पर भाजपा के खिलाफ सुर लगाने वाले कई युवा नेता सूरमा बन उभरे हैं।

हार्दिक पटेलगुजरात में हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकुर और जिग्नेश मेवानी ने भले ही कांग्रेस को सत्ता तक ले जाने में सफलता प्राप्त नहीं की, लेकिन भाजपा को पसीना बहाने पर मजबूर जरूर कर दिया। यदि वे आत्मुग्धता का शिकार नही होते तो भाजपा को उनकी चुनौती जरूर मिलेगी। यही हाल महाराष्ट्र में भी है।

वर्ष 2017 को भाजपा और शिव सेना के बीच के संबंधों में सबसे खट्टे वर्ष के रूप में जाना जाएगा। दो पार्टियां इस वर्ष संबंध विच्छेद की कगार पर पहुंच चुकी है।

वर्ष 2019 के आम चुनाव में पार्टी के लिए यह विषय बड़ा सिरदर्द बनने वाला है। 25 वर्षों से भी पुरानी इस दोस्ती के दुश्मनी में बदलने का खामियाजा दोनों पार्टियों को भुगतना पड़ सकता है।