क्या इंस्पेक्टर राज की वापसी होगी ?
काले धन और भ्रष्टाचार के सफाये की सरकारी मुहिम और नोटबन्दी के बीच जिस तरह से बैंकों और सरकारी जांच एजेंसियों की जिम्मेदारी और भूमिका बढ़ी है, उससे कुछ नए सवाल भी सामने आने लगे हैं ।
प्रवर्तन निदेशालय, इनकम टैक्स विभाग आदि जांच एजेंसियों ने जिस तरह से हाल के दिनों में छापेमारी कर ढेरों सोना और नये-पुराने नोटों का जखीरा जब्त किया है, उससे यह तो स्पष्ट है कि सरकार काला धन एकत्र करने वालों को बख्शने के मूड में कतई नहीं है ।
यह साफ है कि भविष्य में धर-पकड़ की यह मुहिम ढीली पड़ने वाली नहीं है वरन इसके और तेज होने की संभावना ही है ।
यह तय है कि नये साल में आर्थिक अपराधों की जांच करने वाली एजेंसियों का काम बढ़ने वाला है ।
इसके साथ ही वित्तीय अपराधों की मुकदमों की संख्या में भी अप्रत्याशित रूप से बढ़ोतरी होने की आशंका है ।
पहले से जो ऐसे मुकदमे लंबित पड़े हैं उनका निपटारा कब होगा, यह कहा नहीं जा सकता । हां, यह जरूर कहा जा सकता है कि पिछले कुछ दिनों से हुई छापेमारी के बाद आर्थिक मुकदमों की संख्या में और इजाफा जरूर हो जाएगा ।
कहीं अननिपटे आर्थिक मुकदमों का पहाड़ ऊंचा तो नहीं हो जाएगा ।
देखा जाए तो एक मुकदमा निपटने में चार-पांच साल लग जाना मामूली बात है । अगर आर्थिक मुकदमों की संख्या बढ़ेगी तो उनके निपटारे में कितना समय लगेगा, यह सोचने वाली बात है ।
इसी के साथ, फिर से इंस्पेक्टर राज के दस्तक देने का खतरा बढ़ने की आशंका भी बलवती दिख रही है ।
नोटबंदी लागू होते ही पुराने नोटों से नये नोटों की अदला-बदली के दौरान जिस तरह से घपलेबाजी हुई, उससे बैंक अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर बड़ा सवालिया निशान लगा दिया है ।
जिस तरह से रोजाना छापेमारी और नये-पुराने नोटों के बड़े जखीरे पकड़े जाने की खबरें टीवी चैनलों और अखबारों की सुर्खियां बनती रही हैं, उससे यह जगजाहिर हो चुका है कि कुछ भ्रष्ट बैंक अधिकारियों ने जनता की नजर में न केवल सभी बैंक अफसरों की छवि को धूमिल किया है बल्कि केंद्र सरकार के काला धन उन्मूलन अभियान को पलीता लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है ।
दिल्ली में रोहित टंडन और पारसमल लोढ़ा के मामले में अब यह खुलासा हो चुका है कि एक बैंक अधिकारी ने 1.5 करोड़ रुपये हजम कर करीब 51 करोड़ रुपये की अदला-बदली का खेल किया था ।
बैंक अफसरों को कमीशनबाजी का जितना खेल करना था, वो कर चुके हैं । जो अफसर पकड़े जा चुके हैं, अब उन्हें जांच का सामना करना है । यह जांच कब तक चलेगी और क्या वास्तव में दोषी अफसर दंडित हो पाएंगे । अभी इस सवाल का जवाब भविष्य में ही है ।
नोटों की अदला-बदली का काम बंद होने के बाद बैंक अधिकारियों की भूमिका सीमित हो गई है । नये साल में ईडी और सीबीआई आदि एजेंसियों का काम बढ़ेगा ।
छापेमारी के बाद आर्थिक मुकदमों की भरमार के बीच ईडी और अन्य जांच एजेंसियों के अफसर अपनी जिम्मेदारी कितनी निभाएंगे, अब यह सवाल उठ रहा है ।
इस बात की क्या गारंटी है कि आगे चल कर जांच के दौरान भ्रष्टाचार का बोलबाला नहीं रहेगा ?
क्या इनकम टैक्स, प्रवर्तन निदेशालय और वित्तीय जांच करने वाली अन्य एजेंसियों के सभी अफसर-कर्मचारी दूध से धुले हैं, जांच के इस स्तर पर वह कितनी ईमानदारी बरतेंगे, इसकी परख का क्या कोई पैमाना केंद्र सरकार के पास है ?
क्या इस बात का जवाब है कि जांच के दौरान उद्यमी और व्यापारी, बिल्डर्स और कांट्रेक्टर आदि जांच अधिकारियों के शोषण से शोषण से बचे रह सकेंगे ? उन्हें रिश्वतखोरी का शिकार नहीं होना पड़ेगा, इसका जवाब शायद ही किसी के पास हो ।
तो इन सवालों के मद्देनजर, यह सोच स्वाभाविक रूप से उभर सकती है कि क्या सिस्टम में फिर से इंस्पेक्टर राज की वापसी होने वाली है ?
वैसे भी, सरकारी दफ्तरों में कोई भी काम बिना रिश्वत कराना, अकल्पनीय है ।
केंद्र सरकार आगे भी कई नयी जनोन्मुखी योजनाएं घोषित करने वाली है, उनके अमल में बैंक और संबंधित विभागों के अफसर व कर्मचारी कितना सहयोग करेंगे, यह कहना मुश्किल ही है ।
वैसे भी, बैंक और सरकारी विभागों के अधिकारियों-कर्मचारियों की मनमानी अभी कुछ कम नहीं है ।
बैंक काउंटरों पर ग्राहकों के सवालों का जवाब बेरुखी से देना आम बात है ।
जब बैंकों में काम का बोझ बढ़ेगा तो बैंक कर्मचारियों का बैंक में आने वाले ग्राहकों के प्रति रवैया और ज्यादा उदासीन हो सकता है, यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है ।
ऐसे में जनता को सरकारी योजनाओं का लाभ कितना मिल पाएगा, यह भी दिवा-स्वप्न ही होगा ।
इन सभी आशंकाओं को खत्म करने के लिए सरकार को सिस्टम को ज्यादा चुस्त-दुरुस्त करना होगा ।
रिश्वतखोरी पर अंकुश लगाने और जांच एजेंसियों के काम में पारदर्शिता लाने के प्रभावी उपाय करने होंगे, ताकि इंस्पेक्टर राज की वापसी की आशंका को सिरे से निर्मूल कर दिया जाए ।
एक जनहितकारी और लोक लुभावन सरकार के लिए यह बेहद जरूरी भी है ।