पर्व ओड़िशा : ओड़िया अस्मिता की सशक्त अभिव्यक्ति

पर्व ओड़िशा
शिवानन्द उपाध्याय

“सभी प्राणियों के दुखों को देखना अत्यंत असहनीय है | भले ही मेरा जीवन नरक भोगता रहे लेकिन जगत का इन दुखों से उद्धार हो जाय |”

उन्नीसवी सदी के ओडिशा के महान संत कवि भीमा भोई का यह कथन भारत की उस गौरवपूर्ण परंपरा की कड़ी है जिसकी शुरुआत गौतम बुद्ध से होते हुए तुकाराम, कबीर, नानक, नरसी मेहता, दादू आदि तक चली आई है जो प्राणी-मात्र के कल्याण के लिए सर्वस्व त्याग करने के लिए तत्पर रही है |

भीमा भोई का यह कथन ही ओडिशा की धार्मिक और सांस्कृतिक अस्मिता को विशिष्ट पहचान देता है |

इसी कारण सुप्रसिद्ध साहित्यकार और आलोचक अशोक वाजपेयी यह स्वीकार करते है कि “भारत की कोई भी कल्पना या विचार शताब्दियों से अपने अस्तित्व और अस्मिता के लिए गौरवमयी संघर्ष करते ओडिशा के बिना असंभव है |”

ओडिशा भारत का एक ऐसा राज्य है जिसकी अपनी प्राचीन सभ्यता, अद्वितीय संस्कृति, समृद्ध परंपरा और अपार प्राकृतिक संपदा एवं सुंदरता के कारण एक विशिष्ट पहचान है |

इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं कि इस राज्य को ‘भारत की आत्मा’ कहा जाता है|

“पर्व ओडिशा” ओडिशा राज्य की इसी अस्मिता को समग्रता में सहेजती है जिसका लोकार्पण केन्द्रीय वित्त मंत्री माननीय अरुण जेटली ने ओडिया समाज द्वारा 29 अप्रैल 2017 को आयोजित ‘ओडिशा परब’ के दौरान किया |

यह पुस्तक अपने विषय वस्तु में ओडिशा राज्य की उत्पति और गौरवपूर्ण इतिहास के साथ ही, उड़िया भाषा की अस्मिता, स्वाधीनता के अभिमान, प्राकृतिक सौन्दर्य, तीर्थस्थलों की ऐतिहासिकता, धार्मिक परंपराओं, सांस्कृतिक, नृजातीय विकासशीलता, नृत्य की अनूठी भंगिमाओं, पकवानों की खुशबू, परिधानों की विविधता और सामाजिक सरोकारों की इन्साइक्लोपीडिया है जो उन इतिहासकारों के समक्ष चुनौती खड़ी करती है जिन्होंने इतिहास लेखन में ओडिशा के सामाजिक-राजनीतिक-सांस्कृतिक-आर्थिक-भाषिक-नृजातीय विकास एवं परंपरा को या तो पर्याप्त महत्व नहीं दिया है या हाशिए पर रखा है |

समकालीन लेखकों के साथ ही गुजरे वक्त के देशी विदेशी लेखकों के आलेखों के द्वारा ओडिशा के कुछ अनजान एवं विस्मृत पहलुओं से लगभग 300 पृष्ठों के इस संकलन द्वारा अवगत कराने के लिए संपादकों-सुजीत कुमार प्रुसेठ और चारुदत्ता पाणिग्रही-का प्रयास सराहनीय है|

राष्ट्र के निर्माण में ओडिशा की भूमिका को रेखांकित करते हुए राष्ट्रपति माननीय प्रणव मुखर्जी ने “पर्व ओडिशा” को अपने बधाई सन्देश में माना है कि ओडिशा पूरब की देव स्थली है जो अदम्य मानवीय जिजीविषा के बल पर अपनी प्राचीन संस्कृति को अक्षुण्ण बनाए हुए है |

माननीय राष्ट्रपति के अनुसार “पर्व ओडिशा” पुस्तक ओडिशा के जीवन और समाज के प्रत्येक पहलू को प्रतिबिंबित करने वाला बेशकीमती संकलन है |

राष्ट्रपति मुखर्जी ने “प्रवासी ओडिशा” भाषण में गोपबंधु दास और मधुसूदन दास जैसे स्वतंत्रता सेनानियों को याद किया जिन्होंने स्वतंत्रता के संघर्ष में गांधीजी के सहयोगी रहे और उड़िया गौरव को नयी ऊंचाई प्रदान की |

इस संकलन में सरदार बल्लभ भाई पटेल और सी. एफ. एंड्रयूज के मूल आलेख संकलित है |

सरदार पटेल ने आजादी के बाद राष्ट्रीय एकीकरण के पीछे ओडिशा को प्रेरणा के रूप में स्वीकार किया है जो न केवल भाषा के आधार पर गठित होने वाला पहला राज्य है बल्कि रियासतों को भारतीय गणतंत्र के साथ एकीकरण में सबसे अग्रणी राज्य रहा है |

सी. एफ. एंड्रयूज ने ओडिशा के लोगों की अदम्य जिजीविषा को सैल्यूट किया है जिनकी प्राकृतिक एवं मानवीय आपदाओं की निरंतरता के बावजूद धर्म के प्रति गहन आस्था बरकरार है और यही आस्था उन्हें सहृदय बनती है |

ओडिया भाषा की अस्मिता को लेकर सुप्रसिद्ध भाषाविद सुनीति बाबू के आलेख है, जिसमें तथ्यों के आधार पर प्रमाणित किया है है कि ओडिया भाषा का अन्य भारतीय भाषाओँ से गहरा जुडाव रहा है|

ओडिया भाषा की प्राचीनता, साहित्यिक विशालता और देव-भाषा संस्कृत से गहरी संपृक्तता उसे शास्त्रीय(क्लासिकल) भाषा का गौरव प्रदान करती है |

एक ओर जहाँ जॉन बीम्स ने ओडिया भाषा और अन्य आर्यन भाषाओँ के बीच अंतर्धारा को सूक्ष्मता से उदघाटित किया है, दूसरी ओर जॉन बोल्टन ने ओडिया भाषा में रचित महाभारत के माध्यम से ओडिशा की अखिल भारतीय सांस्कृतिक संबंधों को रेखांकित किया है |

सुजीत प्रुसेठ ने जहाँ गंगाधर मेहर जैसे महान कवि-व्यक्तित्व की प्रतिभा के साथ न्याय किया है वही जॉन बोल्टन के आलेख में फ़क़ीर मोहन सेनापति जैसे महान कथा सम्राट को समझने की एक अलग दृष्टिकोण प्रस्तावित है जिनका साहित्य तत्कालीन ओडिया समाज का इन्साइक्लोपीडिया है|

ओडिशा की ऐतिहासिकता के संबंध में तथ्यपरक और प्रासंगिक आलेख हरमन कुल्के, ओ मल्ले, जी ट्वायन्बी, जॉन बोल्टन, एलिस बोनर, मुल्कराज आनंद और देबाला मित्रा के हैं, जिसमें प्राचीन राष्ट्र कलिंग से लेकर, खारवेल राज्य, उदयगिरी और खंडगिरी से गुजरते हुए आधुनिक राज्य ओड़िशा तक के विकास और घटनाक्रमों का सूक्ष्म विश्लेषण मौजूद है |

स्वाधीनता आन्दोलन के दौरान ओडिया स्वाभिमान उसी तरह से अडिग रहा जिस प्रकार अशोक के भयानक रक्तपात के बावजूद विचलित नहीं हुआ | “रिसर्जेंट ओडिशा” खंड में एंड्रयू स्टर्लिंग, एफ. जी. बेली, गोपाल कृष्ण दास के आलेख ओडिया समाज के इसी जुझारूपन को प्रदर्शित करते हैं |

ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ पाईक विद्रोह को इतिहासकारों ने पर्याप्त महत्व नहीं दिया है, लेकिन उस विद्रोह की प्रचंड शक्ति और विस्तार का उदघाटन सुभकंता बेहरा और कृष्ण चन्द्र भुइया ने किया है |

बलभद्र घडई 1857 के विद्रोह के दौरान ओडिशा में विद्रोह का प्रतिनिधित्व करने वाले सुरेन्द्र साई के योगदान से रूबरू कराते है जिन्हें इतिहासकारों ने शायद ही चर्चा करने के योग्य माना है |

मनोज दास ने भगवान जगन्नाथ और उनकी रथयात्रा की पौराणिकता से परिचित कराया है, जिनके बिना ओड़िया जीवन और समाज, कला और संस्कृति के ताने-बाने की परिकल्पना ही अधूरी है |

इसी परिप्रेक्ष्य में संपादकों ने 12 वर्षों में एक बार हर्षोल्लास के साथ मनाया जाने वाला ‘नाबाकलेबारा’ उत्सव के सामाजिक और आर्थिक महत्त्व पर प्रकाश डाला है और उस नब्ज़ को पकड़ने की कोशिश की है जिसके कारण ओड़िशा के लोग कर्ज लेकर भी इस उत्सव में शामिल होते है |

ओडिशी एक शास्त्रीय नृत्य तो है ही, साथ ही मलेशियाई डांसर रामली इब्राहिम ने ईव द्वारा एडम को सेव देकर रिझाने को ओडिशी के आकर्षक नृत्य का ही एक स्टाइल माना है |

जगन्नाथ प्रसाद दास ने ताड़-पत्र चित्रकारी जैसी अनूठी कला की बारीकियों से अवगत कराया है, जिसके द्वारा ओडिशा की सम्पूर्ण संस्कृति को चित्रित किया गया है |

मुल्कराज आनंद कोणार्क मंदिर के प्रति अपनी श्रद्धा भक्ति व्यक्त करते हुए उसके स्थापत्य और भीति चित्र को सर्वश्रेष्ठ कृति का दर्जा देते है, जबकि कोणार्क मंदिर की निर्माण संरचना के द्वारा प्राचीन भारत के वैज्ञानिक निर्माण की श्रेष्ठता को एलिस बोनर ने रेखाचित्रों के द्वारा प्रदर्शित किया है |

नारायण प्रुसेठ नृसिंहनाथ मंदिर, जो चीनी यात्री ह्वेनसांग के अनुसार बौद्ध शिक्षण का केंद्र था, और केदारनाथ महापात्रा चौसठ योगिनी मंदिर की ऐतिहासिकता और पौराणिकता को राष्ट्रीय स्तर पर सामने लाते है |

नृसिंहनाथ मंदिर के शिलालेखों पर ओड़िया भाषा के प्रारंभिक स्वरुप का पहला साक्ष्य है | राम प्रसाद चन्द्र ने सिद्ध किया है कि बौद्ध स्मारकों से युक्त ओडिशा बौद्ध सर्किट में भले ही शामिल नहीं है, लेकिन इसका स्वयं में बौद्ध सर्किट के समतुल्य महत्व है|

यह बड़ी विडंबना है कि अभी तक हमारे पर्यटनविद या पर्यटन मंत्रालय हिल स्टेशनों के अलावा ताजमहल, लालकिला, फतेहपुर सीकरी या मुस्लिम शासकों के बनवाए महलों किलों, मस्जिदों और मकबरों के बीच ही अधिकतर उलझा हुआ रहा है |

सच तो यह है इन महलों और मकबरों से पहले और बाद में भी भारत के तीर्थस्थल पर्यटन के प्रमुख केंद्र रहे है |

ओडिशा के स्वर्णिम त्रिभुज भुवनेश्वर में लिंगराज मंदिर, पुरी में जगन्नाथ मंदिर और कोणार्क में सूर्य मंदिर पर्यटन के ऐसी केन्द्र है जो ने केवल लाखों श्रद्धालुओं को बल्कि देशी-विदेशी कलाविदों और पर्यटकों को आकर्षित करते है जो इस बात का साक्ष्य देते है कि यदि सही मायने में भारत प्राचीन मंदिरों, तीर्थस्थलों, स्तूपों, गुफाओं और प्राकृतिक झीलों, नदियों, जलप्रपातों को समुचित ढंग से विकसित किया गया होता तो आज देश की जीडीपी में सबसे अधिक योगदान पर्यटन का होता|

समुद्र तटीय प्रदेश होने के कारण ओडिशा प्राचीन काल से ही विदेशों से व्यापार का प्रमुख केंद्र रहा है | देबी प्रसन्ना पटनायक, एल. एस. एस. ओ. मैली, पतित पावन मिश्र, ललित मानसिंह, समीर कुमार दास और आर बालाकृष्णन के आलेख प्राचीन काल से वर्तमान समय में विदेशों से होने वाले व्यापारों का विस्तृत विवरण उपलब्ध कराते है |

“पर्व ओडिशा” की यूएसपी ओडिशा की कला, संस्कृति और हस्तियों से जुड़े वे फोटोग्राफ, डाक टिकट, हस्तलिखित पत्रों के छायाचित्र, ताड़-पत्रों पर चित्रित संदेश, शिलालेखों, विलुप्त स्मारकों के चित्र है, जिसे प्राप्त करने के लिए संपादकीय टीम का दुष्कर प्रयास प्रशंसनीय है |

इस पुस्तक के अंतिम खंड में ओडिशा की कुछ प्रमुख हस्तियों-जे. पी. दास, न्यायमूर्ति अरिजीत पसायत, पूर्व लोकसभा अध्यक्ष रवि राय और संदीप महापात्रा-ने ओडिया जन मानस को अपनी अस्मिता, अपने गौरव और महान सांस्कृतिक विरासत को पहचानते हुए उसे आगे बढ़ाने एवं राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराने की अपील की है |

 

शिवानन्द उपाध्याय