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स्मृति ईरानीः डिमोशन और प्रमोशन से परे शख्सियत

Smt. Smriti Irani interacting with media persons, on taking charge as the Union Textiles Minister, in New Delhi on July 06, 2016.

विक्रम उपाध्याय

यों तो मोदी मंत्रिमंडल में 19 नये चेहरे आए और एक दर्जन से अधिक मंत्रियों के विभाग बदले। पर चर्चा का केंद्र स्मृति ईरानी ही बनीं।
सबसे अधिक पावरफुल मंत्री का तमगा लिए अरूण जेटली से सूचना व प्रसारण मंत्रालय ले लिया गया।

भूमि अधिग्रहण बिल पर मोदी की हार के लिए कुछ हद तक जिम्मेदार चौधरी वीरेन्द्र सिंह को ग्रामीण विकास मंत्रालय से हटा दिया गया।

कई साल बाद भारत संचार निगम लिमिटेड को लाभ में पहुंचाने का दम भरने वाले रविशंकर प्रसाद को संचार मंत्रालय से हटा दिया गया और विपक्ष को साधने में पूरी तरह विफल वेंकैया नायडू को संसदीय कार्यमंत्रालय से छुंट्टी दे दी गई, लेकिन चर्चा सिर्फ स्मृति ईरानी की हुई।

सुर्खिया बनी कि ईरानी के पर कतर दिए गए। सोशल मीडिया पर जोरदार कैम्पेन चलाया गया कि मोदी सरकार ने मानव संसाधन मंत्रालय उनने छीन कर एक तरह से सरकार की इमेज को ही बचाया।

लोग यह जानना चाहते हैं कि क्या वाकई छोटे पर्दे की बहू स्मृति, प्रधानमंत्री मोदी का विश्वास खो चुकी है। इसकी पड़ताल तथ्यों से कर सकते हैं।

यह सही है कि स्मृति ईरानी को वक्त से पहले और अनुभव से ज्यादा तव्जजों प्रधानमंत्री ने दी।

लेकिन यह भी उतना ही सही है कि स्मृति ईरानी ने मोदी सरकार और खास कर संघ के एजेंडे को उतनी ही मजबूती प्रदान की।

पूर्ण बहुमत की सरकार आने के बाद प्रधानमंत्री के पास मानव संसाधन मंत्रालय के उपयुक्त कई सांसद और नेता थे। फिर स्मृति ईरानी का ही उन्होंने चयन क्यों किया। इसके मोटे तौर पर दो कारण थे।

स्मृति ईरानी ने कोई चुनाव नहीं जीता, लेकिन हारने के बावजूद कांग्रेस के दो बड़े दिग्गजों को उन्होंने कड़ी टक्कर दी।

पहली बार चांदनी चौक से कांगं्रेस के दिग्गज कपिल सिब्बल को 2004 में और दूसरी बार कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी को अमेठी से 2014 मे। स्मृति प्रधानमंत्री मोदी के कांग्रेस मुक्त अभियान में प्रमुख योद्धा बन कर सामने आई।

स्मृति जुबेर ईरानी की एक और खासियत है जिसे लेकर प्रधानमंत्री ज्यादा प्रभावित हुए, वह है उनकी हाजिरजवाबी और भाषण की अद्भूत कला।

हिंदी-अंग्रेजी दोनों भाषाओं पर समान रूप से नियंत्रण एवं अपनी बात मजबूती से रखने के प्रति उनकी जिद। उनकी यह प्रतिभा तब काम आई जब मोदी जी को गुजरात से दिल्ली स्थापित करने का अभियान शुरू ही हुआ थाा।

2004 में नरेन्द्र मोदी से गुजरात के दंगे के लिए माफी मांगने की मांग करने वाली स्मृति 2014 में प्रधानमंत्री उम्मीदवार के लिए आडवाणी मोदी प्रतिस्पर्धा में मोदी के पाले में खड़ी नजर आई।

अब इसे मोदी भक्ति का ईनाम कहें या फिर उनकी मेहनत और लगन की कीमत स्मृति को मानव संसाधन मंत्री बना दिया गया।

प्रधानमंत्री के इस फैसले के पीछे जो भी कारण रहे, स्मृति ने इसकी बड़ी कीमत चुकाई। टेलीविजन की दुनिया से राजनीति के संसार में भले ही उन्हें प्रमोद महाजन लेकर आए।

लेकिन उनके कद में इतनी वृद्धि सिर्फ मोदी जी के कारण ही हुई। स्मृति को राजनीति में सिर्फ अमृत ही नहीं मिला उन्हें विष पान भी करना पड़ा।

कांग्रेस या विपक्ष के लोग ही नहीं भाजपा के भी कुछ लोग मोदी स्मृति के संबंधों पर छीटाकशी करने में पीछे नहीं रहे।

अमेठी में खुले मंच से मोदी ने स्मृति ईरानी को अपनी छोटी बहन कहा, पर इस रिश्ते को लोगों ने अपनी तरह से प्रभाषित किया।

असम के एक कांग्रेसी नेता ने उन्हें मोदी की दूसरी पत्नी तक का दर्जा दे दिया तो युवा कांग्रेस के अध्यक्ष रहे अमरिंदर सिंह राजा ने सार्वजनिक रूप से ट्वीट किया …. ईरानी क्या है तेरी कहानी?

जो तू बन बैठी इतनी जल्दी बीजेपी की महारानी। क्या कला दिखाई जो मोदी हुए दिवाने? तू सुना दे तेरी जुबानी।

’ इंद्रानी मिश्र ने ट्वीट किया- एक तो बारवीं फैल उस पर से चुनाव में भी फेल और फिर भी शिक्षा मंत्री …..क्यों कैसा यह ईश्क है अजब सा रिस्क है।

किसी चैनल के सीनियर पत्रकार ने पूछा – मोदी जी ने आपमें क्या देखा कि आपको मिनिस्टर बना दिया। भाजपा में भी कुछ लोगांे ने मोदी की स्मृति ईरानी से नजदीकियों को अलग ढंग से प्रचारित किया।

कहा गया कि प्रधानमंत्री मोदी के आवास 7 रेस कोर्स में केवल ईरानी ही हैं जिनकी सुरक्षा जांच नहीं होती। यहां तक कि सुषमा स्वराज की जांच होती है।

राजनीति में दो शख्सियतों के बीच के संबंध को अलग नजरिये से देखने की यह कोई पहली घटना नहीं है, लेकिन ईरानी के प्रति शब्दों की मर्यादा ज्यादा गिराई गई।

अपने और मोदी जी के संबंधों को स्मृति ईरानी ने स्वयं इन शब्दों में परिभाषित किया- जिस दिन मोदी जी ने मुझे अपनी छोटी बहन कहा, वह मेरे जीवन का सबसे बडा दिन था।

वे जब कहेंगे मंत्रालय उसी समय छोड़ दूंगी लेकिन उनका आशीर्वाद जीवन भर अपने पास रखूंगी।

मानव संसाधन मंत्रालय से स्मृति ईरानी की छुट्टी के पीछे आरएसस के दबाव को कारण बताने वाले शायद यह भूल रहे हैं अभी कुछ दिन पहले तक स्मृति पर यही आरोप लग रहा था कि उन्होंने  शिक्षा का भगवाकरण कर दिया है।

शिक्षा के क्षेत्र में उचे पदों पर संघ समर्थक लोगों की नियुक्ति और नई शिक्षा नीति पर संघ प्रमुख मोहन भागवत से निजी मंत्रणा भी लोगों की आंखों में चुभी।

स्मृति पर यह भी आरोप लगा कि उन्होंने संघ की स्टूडैंट इकाई विद्यार्थी परिषद को खूब बढ़ावा दिया और दूसरे संगठनों को ठंगे पर रखा।

हैदराबाद से लेकर जेएनयू तक में विद्यार्थी परिषद की बढ़त को स्मृति ईरानी का खुला समर्थन माना गया। कहा तो यहां तक गया कि स्मृति ईरानी ने संघ के नेता डॉ कृष्ण गोपाल से पूछे बिना शिक्षा के क्षेत्र में कोई नियुक्ति नहीं की।

जब सब कुछ ठीक ही है तो फिर स्मृति ईरानी को मानवसंसाधन मंत्रालय से क्यों हटाया गया। यह सवाल लोग उठा रहे हैं।

कुछ लोगों का तर्क है कि स्मृति ईरानी भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के साथ वो तारतम्य नहीं बना पाई जो उन्हें मोदी जी के साथ बनाया। उनका मंत्रालय बदले जाने के पीछे सिर्फ शाह ही हैं।

पर कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि स्मृति ईरानी के बारे में नकारात्मक प्रचार बहुत हो गया था और वह सरकार की छवि को भी नुकसान पहुंचा रहा था, इसलिए उन्हें मानवसंसाधन से कपड़ा मंत्रालय भेज दिया गया।

कहा तो यह भी जा रहा है कि स्वयं प्रधानमंत्री मानते हैं कि उत्तरप्रदेश के चुनाव के मददे नजर स्मृति ईरानी कपड़ा मंत्री के रूप में ज्यादा उपयोगी हो सकती है और वे उत्तरप्रदेश में ज्यादा समय दे सकती हैं।

यह भी कहा जा रहा है कि चालू वित्त वर्ष के बजट में कपड़ा उद्योग के लिए कई छूट प्रदान की गई है और मंत्रालय का बजट भी बढ़ाया गया है।

यहीं नहीं किसानों की आमदनी 2020 तक दूनी करने के प्रधानमंत्री के वायदे का भी दारोमदार कपड़ा मंत्रालय पर टिका हुआ है।

कपास की खेती करने वाले किसान सबसे ज्यादा आत्महत्या कर रहे हैं, इसलिए स्मृति ईरानी को मंत्रालय में भेजा गया है कि वह न सिर्फ कपास के किसानों को बेहतर मूल्य दिलवाए बल्कि बीटी कपास से उन्हें ऑर्गेनिक कपास की ओर मोड़ने में भी भूमिका निभाए।

खैर दलील हर प्रकार के हैं। स्मृति ईरानी को इससे क्या फर्क पड़ता है।

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