‘जयगुरूदेव’ बनने के चक्कर में जमीन माफिया बन बैठा रामवृक्ष!

rambrakhya yadav

विक्रम उपाध्याय

रामवृक्ष यादव, यही नाम है उस कथित सत्याग्रही का जिसने मथुरा में मौत का तांडव मचा कर पूरी दुनिया में भारत का नाम ही खराब नहीं किया, बल्कि भारतीय संत परंपरा पर भी एक बड़ा धब्बा लगा दिया।

रामवृक्ष यादव दरअसल पिछले कई वर्षों से मथुरा में अपना दबदबा कायम करने में लगा था, उसकी योजना अपने गुरू, जिसे लोग जयगुरूदेव के नाम से जानते हैं, के ही साम्राज्य को कब्जे में लेने की थी, लेकिन वहां पंकज यादव के काबिज होने और उसे सपा सरकार का पूरा समर्थन प्राप्त होने के कारण रामवृक्ष की दाल नहीं गली।

परंतु रामवृक्ष ने हार नहीं मानी। जयगुरूदेव के परलोक सिधारने के बाद से ही वह मथुरा में जमने का दृढ़ निश्चय कर चुका था।

जयगुरूदेव के सफल होने का पूरा फॉर्मूला उसे पता था। उसने भी गरीबों को ढ़ाल बनाया। मध्यप्रदेश के सागर से चलकर मथुरा के जवाहर पार्क में दो दिन के लिए रुकने की अनुमति लेने के बाद वह वहीं जम गया। उसने भी वहीं तरकीब अपनाई जो जयगुरूदेव के आश्रम में उसने देखा।

विशाल आश्रम, शानदार बैठकें। तमाम सुविधाएं। सैकड़ो विदेशी महंगी गाडि़यां। सैकड़ों एकड़ खेत और सैकड़ों गायें। यह वैभव उन सबने देखा है, जो मथुरा स्थित जयगुरूदेव के आश्रम में गये होंगे।

यही नहीं जयगुरूदेव आश्रम के खाते में करोड़ों रुपये भी पड़े थे। रामवृक्ष यादव के लिए इन सब पर कब्जा जमाना मुश्किल हो रहा था तो उसने ऐसा ही साम्राज्य खड़ा करने का प्रयास शुरू कर दिया। और उसमें उसका साथ कुछ सत्ताधारियों का भी मिला।

रामवृक्ष यादव ने जयगुरूदेव की तरह शांति और अहिंसा का पाठ लोगों तक पहुंचाने के बजाय, जयगुरूदेव के आगे बढ़ने का मार्ग अपना लिया। जमीन पर कब्जे, गांव वालों परं दबदबे के लिए दहशत का माहौल खड़ा करने।

लठैतों और हथियारबंद लोगों को साथ रखकर शासन प्रशासन पर भी रौब यह सब रामवृक्ष यादव ने भी किया।

मथुरा की अदालतों को खंगालने पर पता चल जाएगा कि किस तरह जयगुरूदेव के लोगों पर भी यही आरोप लगे थे जो आज रामवृक्ष यादव पर लगें है। जयगुरूदेव के जमाने में भी स्थानीय किसानों के साथ खूब टकराव हुएं।

जमींदारों ने आश्रम के खिलाफ जमीन कब्जाने के कई मुकदमें दर्ज करवाए।

भारतीय पुरातत्व विभाग ने जयगुरूदेव के आश्रम के खिलाफ यह मुकदमा दायर किया कि आश्रम ने दर्जनों ऐतिहासिक महत्व के निर्माणों को ढ़हा दिए और वहां से मिली सामग्री को कभी भी पुरातत्व विभाग को नहीं सौंपा।

उत्तरप्रदेश औद्योगिक विकास निगम यानी यूपीएसआईडीसी ने जयगुरूदेव आश्रम पर सैकड़ों एकड़ भूमि कब्जा लेने का मुकदमा दायर किया।

मथुरा के ही 23 किसानों ने जिला मजिस्टेट को लिखित शिकायत दी कि जयगुरूदेव के लोगों ने जबरन उनकी जमीनों पर कब्जा जमा लिया है। लेकिन उसके बावजूद जयगुरूदेव का परचम लहड़ाता रहा ।

रामवृक्ष यादव ने जयगुरूदेव की तरह ही बेतुके बयानबाजी का सहारा लिया। जयगुरूदेव ने कभी खुद को सुभाष चंद्र बोस घोषित कर दिया था, तो रामवृक्ष यादव सुभाष चंद्र बोस के नाम पर व्यवस्था चलाने का दम भरने लगा।

खुद को स्वयंभू सम्राट ओर अपने सिक्के चलाने की बात करने लगा। देश के संविधान और संविधानप्रमुखों की खिल्ली उड़ाने लगा और प्रशासन उसे यह सब कुछ करने दिया।

नतीजा हम सबने देख लिया। दो जाबांज पुलिस अधिकारी अपनी जान गवां बैठे और 22 अन्य को भी मौत ने निगल लिया। पता नहीं कब तक हमारा प्रशासन और समाज भष्मासुरों को पनपने देता रहेगा और उसकी भारी कीमत चुकाता रहेगा।

कौन थे जयगुरुदेव 

जयगुरुदेव जब तक इस उपाधि तक पहुचे उनकी जिन्दगी आधी बीत चुकी थी । उनके बारे में तरह तरह की कहानियां कही जाती हैं। उनका जन्म इटावा जिले में हुआ था और बचपन में ही माँ बाप का साया उनके सर से उठ गया था। बताते हैं कि घूरे लाल शर्मा इनके प्रारम्भिक गुरु थे ।

बाद में वे कई और संतों से मिलें जिनमें ओंकार नाथ भी थे । इमरजेंसी के दौरान वे जेल भी गये। १९८० में दूरदर्शी पार्टी बनाकर राजनीति भी की । जयगुरुदेव एक बार खुद को नेता जी सुभाष चन्द्र बोस भी घोषित कर चुके थे । वे गरीबो में ज्यादा पूजनीय थे और आकाररहित ईश की आराधना में विश्वास रखते थे ।

जयगुरुदेव अपनी शानदार जीवनशैली के लिए भी जाने जाते थे । उन्होंने अकूत सम्पति इक्कठी कर ली थी। २०१२ में उनकी मृत्यु के बाद उनकी सम्पति १२ हजार करोड़ की आंकी गयी थी, जिसे लेकर उनके चेलों में जबर्दश्त संघर्ष चल रहा है ।