काले धन का दोहरा संकट
डा. भरत झुनझुनवाला
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के नागरिकों को चेतावनी दी है कि काले धन की घोषणा करके उस पर टैक्स अदा कर दें अन्यथा 30 सितम्बर के बाद सख्त कदम उठाए जाऐंगे। काला धन रखने वालों को जेल भी भेजा जा सकता है।
हाल मे ही बेनामी प्रापर्टी को जब्त करने का नया कानून संसद ने पारित किया है। मोदी सरकार की शीर्ष स्तर पर ईमानदारी एवं दृढ़ संकल्प को देखते हुए इस कदमो को गम्भीरता से लेना चाहिए।
प्रश्न है कि इन सही कदम का अंतिम परिणाम क्या होगा। क्या काले धन पर नियंत्रण से देश की अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी।
आर्थिक विकास का रास्ता निवेश होता है। जैसे एक आटो रिक्शा चालक अपनी 500 रुपए प्रतिदिन की कमाई मे 200 रुपए की बचत करे तो दो साल मे 1,20,000 रुपए जमा कर सकता है।
इस रकम पर बैंक से लोन लेकर वह मोटर कार खरीद कर टैक्सी चला सकता है। तब उसकी आय 500 रुपए प्रतिदिन से बढ़कर 1,000 रुपए प्रतिदिन हो जाएगी। फार्मूला सीधा सा है – आय के अधिकाधिक अंश का निवेश करने से विकास होता है।
आय की रकम की खपत करने से विकास शिथिल हो जाता है। यही बात देश की अर्थव्यवस्था पर लागू होती है।
यूपीए सरकार के कार्यकाल मे काले धन का बोलबाला था। मंत्री एवं अधिकारी घूस लेकर उद्यमी को राहत देते थे। जैसे मान लीजिए किसी उद्योग के लिए प्रदूषण नियंत्रण प्लांट लगाना अनिवार्य है। मंत्री जी ने घूस लेकर उस पर कार्यवाही नही होने दी।
इससे उद्यमी की लागत कम हुई। उसे प्रदूषण नियंत्रण प्लांट मे निवेश नही करना पड़ा। प्लांट को चलाने मे बिजली खर्च नही करनी पड़ी। माल के उत्पादन मे उसकी लागत कम आई।
उसने प्राफिट कमाया। प्राफिट की रकम का उसने निवेश किया। काले धंधे से निवेश बढ़ा। दूसरी तरफ मंत्री एवं अधिकारियो ने घूस की रकम का निवेश किया।
उन्होंने किसी बिल्डर से पार्टनरशिप स्थापित की और उसके प्रोजेक्ट मे निवेश किया। इस प्रकार यूपीए सरकार के कार्यकाल मे काले धंधे से निवेश मे वृद्धि हुई थी। यही कारण है कि चैतरफा भ्रष्टाचार के बावजूद आर्थिक विकास दर 7 प्रतिशत के सम्मानजनक स्तर पर बनी रही।
मोदी सरकार ने केन्द्र के स्तर पर मंत्रियों एवं अधिकारियों का यह गोरखधंधा बंद कर दिया है। फलस्वरूप उद्यमी को प्रदूषण नियंत्रण प्लांट लगाना पड़ रहा है। माल के उत्पादन मे उसकी लागत ज्यादा आ रही है। उसके प्राफिट दबाव मे है।
वह नया निवेश नही कर रहा है। मंत्री एवं अधिकारियों की काले धन की आय भी न्यून हो गई है। इनके द्वारा बिल्डर के साथ पार्टनरशिप नही बनाई जा रही है। रीयल एस्टेट मे निवेश नही हो रहा है। यहाँ भी मंदी व्याप्त है।
लेकिन काले धन पर नियंत्रण से आई यह मंदी आधी कहानी ही बताती है। उद्यमी तथा मंत्री द्वारा निवेश कम हो रहा है यह सच है। परन्तु सरकार का राजस्व बढ़ रहा है। टैक्स की चोरी घटी है।
प्रधान मंत्री द्वारा 30 सितम्बर की चेतावनी दिया जाना तथा बेनामी प्रापर्टी को जब्त करने का कानून बनाना इसी दिशा मे एक और कदम है। सरकार के राजस्व मे आने वाले समय मे और वृद्धि होगी। प्रश्न है कि इस राजस्व का उपयोग किस दिशा मे किया जाता है।
सरकार द्वारा इस रकम का निवेश किया गया तो अर्थव्यवस्था मे निवेश बढ़ेगा और वह सफेद धन के बल पर चल निकलेगी। उद्यमी तथा मंत्री द्वारा काले धन का निवेश न करने से जो मंदी आई है वह सरकार द्वारा सफेद धन का निवेश करने से कट जाएगी।
जैसे मंत्री जी ने बिल्डर के साथ पार्टनरशिप नही बनाई। बिल्डर का धंधा पस्त हुआ। लेकिन सरकार ने हाईवे एवं बंदरगाह बनाए। बिल्डर के पस्त होने से आई मंदी, सरकारी निवेश मे वृद्धि से कट गई।
अर्थव्यवस्था साफ भी हो गई और गतिमान भी। यह उत्तम स्थिति है जहाँ हमे पहुँचना है।
दूसरी परिस्थिति मे सरकार द्वारा राजस्व का उपयोग निवेश के स्थान पर सरकारी कर्मियों को बढ़े वेतन देने मे किया जा सकता है। जैसे वन रैंक वन पेंशन तथा सातवें वेतन आयोग के नाम पर इन्हे बढ़ा कर वेतन दिए जा रहे है।
सरकारी कर्मियों द्वारा इस रकम से खपत बढ़ाई जा रही है जैसे इनके द्वारा लक्जरी कार खरीदी जा रही है अथवा विदेश यात्रा को जाया जा रहा है अथवा सोना खरीद कर बैंक के लाॅकर मे रखा जा रहा है।
ऐसा करने से सरकार के राजस्व का उपयोग निवेश मे नही बल्कि खपत को बढ़ाने मे हो जाता है। इसका परिणाम होता है कि निजी क्षेत्र द्वारा काले धन, एवं सरकारी क्षेत्र द्वारा सफेद धन दोनो द्वारा ही निवेश मे कटौती हो जाती है।
काले धन पर नियंत्रण का अंतिम परिणाम इस बात पर निर्भर करता हे कि राजस्व की वृद्धि का उपयोग किस प्रकार किया जाता है। यदि राजस्व का उपयोग निवेश बढ़ाने के लिए किया जाता है तो अर्थव्यवस्था मे चार चांद लग जाऐंगे।
इसके विपरीत यदि राजस्व का उपयोग खपत बढ़ाने मे किया जाता है तो अर्थव्यवस्था पर ग्रहण लग जाएगा।
इस दिशा मे मोदी सरकार का अब तक का रिकार्ड निराशाजनक रहा है। ईमानदारी से सरकारी राजस्व से खपत को बढ़ाया जा रहा है।
सरकारी निवेश मे निरंतर कटौती की जा रही है। इस कटौती का पूरा दुष्प्रभाव दिख नही रहा है चूँकि ईमानदारी के निजी निवेश मे कुछ वृद्धि भी हुई है।
जैसे हाईवे बनाने का ठेका पारदर्शी और बिना घूस लिए दिए जाने से निजी उद्यमी द्वारा हाईवे बनाने मे अधिक निवेश किया जा रहा है। परन्तु यह उपलब्धि तो यूँ भी अपेक्षित थी। इस ईमानदारी से आर्थिक विकास की गति मे तेजी आनी थी।
लेकिन इस ईमानदारी से केवल सरकार की खपत के दुष्प्रभाव को काटा जा रहा है। जैसे घर का मुखिया दारू पिए और बच्चे को पढ़ाई के लिए भी पैसा दे तो परिवार चल निकलता है।
वही मुखिया ईमानदारी से सोना खरीद कर तिजोरी मे रखे और बच्चे की पढ़ाई के लिए निवेश न करे तो परिवार दब जाता है।
ऐसा ही मोदी सरकार की कृपा से भारतीय अर्थव्यवस्था का हो रहा है। राजस्व के दुरूपयोग के कारण काले धन पर नियंत्रण अभिशाप बनता जा रहा है।