ईमानदारी की राह पर भारत !
देश में नोटबंदी के बाद से केंद्र सरकार नित नई घोषणाएं करती जा रही है । सरकार का यह कदम जनता के बीच नोटबंदी के प्रतिकूल असर को खत्म करने की कोशिश कहा जा सकता है ।
लोग इसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के उस लक्ष्य को आगे बढ़ाने की नीति भी मान सकते हैं जिसके तहत इस राष्ट्र को भ्रष्टाचार से मुक्त कराना है ।
जब हम भ्रष्टाचार के इंडेक्स पर नजर डालते हैं तो हम सबका सिर निश्चय ही शर्म से झुक जाता है । भ्रष्टाचारी मुल्कों की सूची देखें तो अपने देश का नाम काफी नीचे है ।
2016 के शुरुआती दौर में 168 देशों की सूची में भारत 76 वें नंबर पर था हालांकि पिछले साल के मुकाबले इसमें सुधार हुआ है । 2015 में किये गये आकलन में भारत 83 वें स्थान पर था ।
यहां के सिस्टम में काले धन और रिश्वतखोरी का वायरस कई सालों से लगा हुआ है । नकद लेन-देन का चलन रहते देश में काले धन का सृजन करने के मौके बेशुमार रहे हैं ।
भू-खंडों और भवनों के क्रय-विक्रय के दौरान नकदी ली जाती रही है । काले धन को खपाने के लिए और सरकार की नजरों से बचने के लिए बेनामी सौदों का चलन धड़ल्ले से होता रहा है । धनकुबेरों के पास यह आसान फार्मूला रहा है ।
काले धन का दूसरा बड़ा स्रोत टैक्स चोरी रहा है । बड़े से बड़ा धन्ना सेठ क्यों न हो, टैक्स चुकाने से बचना चाहता है ।
उनकी कोशिश यही रहती है कि जो भी जतन करना पड़े, सरकार को टैक्स बिल्कुल न देना पड़े । अगर यह संभव न हो तो फिर जितना कम से कम टैक्स देना पड़े, वही अच्छा है ।
ऊंचे से ऊंचा स्टेटस मेन्टेन करने की लालसा में बड़ी तादात में लोगों के दिलो-दिमाग में बेईमानी रच-बस गई है ।
खास तौर पर सरकारी कर्मचारियों के बीच तो यह महामारी बन कर समाज को अभिशप्त कर रही है । शायद ही कोई विभाग होगा जहां रिश्वतखोरी का कीड़ा न लगा हो ।
देश में कोई नगर पालिका हो, कोई नगर निगम हो या विकास प्राधिकरण, ये सभी प्रतिष्ठान भी इस रोग से नहीं बचे हैं । सरकारी महकमों का तो बुरा हाल है, सभी जानते है ।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सत्ता संभालते ही देश में सफाई अभियान की शुरुआत कर दी । यह अभियान दो स्तरों पर चल रहा है । पहले स्तर पर झाड़ू लगा कर देश को गंदगी से मुक्त कराने का लक्ष्य है तो दूसरे स्तर पर देश में व्याप्त भ्रष्टाचार के सफाये की बात है ।
देश में डिजिटलाइजेशन को बढ़ावा देकर केंद्र सरकार ने भ्रष्टाचार के इस वायरस को जड़ से उखाड़ फेंकने का अपना इरादा जता दिया है ।
देश में नोटबंदी के बाद सरकार की कितनी ही आलोचना क्यों न हो, एक बात तो माननी ही पड़ेगी कि एक ही झटके में अपना देश ई-बैंकिंग और ई- वालेट की दिशा में आगे बढ़ चला है ।
भले ही अभी इसकी रफ्तार बहुत तेज न हो, लेकिन भविष्य में स्थिति काफी अच्छी होने के आसार हैं ।
केंद्र सरकार अब ई-बैंकिंग और ई-वालेट के चलन पर बहुत जोर दे रही है । रेडियो और टीवी जैसे प्रचार माध्यमों में इसके सरकारी विज्ञापनों की भरमार है ।
नोटबंदी के बाद पिछले कुछ दिनों से नकदी की किल्लत ने भी लोगों को मजबूर कर दिया है कि वो ई-ट्रांजेक्शन को अपनाएं और अपने फोन को ही ई-बटुआ बना लें । लोग इसे अपना भी रहे हैं हालांकि अभी इसकी रफ्तार काफी कम है ।
अभी इस राह में कई बाधाएं भी हैं । एक तो अभी देश में इंटरनेट सुविधा सुलभ नहीं है, अक्सर इंटरनेट की स्पीड भी कछुये को मात देती दिखाई देती है ।
देश में बड़ी तादात में लोगों का अनपढ़ होना भी इस काम में बड़ी बाधा है । लोग यही नहीं जानते कि फोन को ई-वालेट की तरह कैसे हैंडिल करें और कैसे ई-बैंकिंग करें । फिर में दिनों-दिन ई- बैंकिंग और आन-लाइन खरीदारी का चलन ज्यादा बढ़ने की उम्मीद है ।
जैसी की संभावना है, इन प्रयासों का एक बड़ा परिणाम यह होने वाला है कि देश में काले धन की कमी हो जाएगी । ज्यों-ज्यों ई-बैंकिंग बढ़ेगी, लेन-देन में नकदी का चलन कम होता जाएगा
जिससे काले धन के सृजन के अवसर लगातार कम होते चले जाएंगे ।
केंद्र सरकार के सख्त रुख को देखें तो भविष्य में काले धन के कारोबारियों पर शिकंजा और ज्यादा कसे जाने की संभावना है ।
पिछले कुछ समय में जिन लोगों ने कारें खरीदी हैं, खास तौर पर मंहगी कारें उन पर तो आयकर विभाग की पैनी नजर गड़ ही गई है । आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय जिस तरह से सक्रिय हैं, उससे तो यही संकेत मिल रहा है ।
केंद्र सरकार की मंशा और जांच एजेंसियों की सक्रियता को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि कालाबाजारियों और रिश्वतखोरों को सचेत हो जाना चाहिये ।
अब उन्हें अपनी करतूतों से बाज आ जाना चाहिये, यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिये कि आने वाले दिनों में वो सरकार की नजर से बच नहीं पाएंगे ।
उन्हें वास्तविक गणना के आधार पर सरकार को पूरा-पूरा टैक्स चुकाना ही होगा । चाहे वो कोई उद्यमी हों, बिल्डर्स हों या कोई मझोला व्यापारी ही क्यों न हों ।
ई-ट्रांजेक्शन के दौर में कोई भी ज्यादा समय तक जांच एजेंसियों की नजरों से बच नहीं पाएगा । जांच एजेंसियां कभी भी और कहीं भी, दीवारों के पीछे छुपा और तहखानों में दबा काला धन खोद ही निकालेंगी ।
तो क्यों न हम, जी हाँ – हम सब यह उम्मीद करें कि अपना देश ईमानदारी की राह पर और आगे बढ़ रहा है ।
इस लेख में दिए गए बिचार लेखकके निजस्व हैं ।