रिजर्व बैंक को स्वतंत्र ही रहने दो
डा. भरत झुनझुनवाला
रिजर्व बैंक के वर्तमान गवर्नर रघुराम राजन ने दूसरे कार्यकाल के लिए अपना नाम वापस ले लिया है। रिजर्व बैंक द्वारा देश की मुद्रा नीति को संचालित किया जाता है।
राजन ने मुद्रा नीति का अपनी समझ के अनुसार स्वतंत्र संचालन किया था और सरकार के दबाव को दरकिनार किया था। इस कारण सरकार उनसे नाखुश थी।
राजन को आभास हो गया होगा कि सरकार उन्हे दूसरा कार्यकाल देने के पक्ष मे नही है। इसलिए उन्होंने स्वयं अपना नाम वापस ले लिया है।
सरकार चाहती है कि मुद्रा नीति पर उसका पूर्ण नियंत्रण रहे। सरकार निर्णय करे कि रिजर्व बैंक द्वारा कितने नोट छापे जाऐंगे। यह निर्णय रिजर्व बैंक के गवर्नर पर न छोड़ा जाए।
इस दिशा मे सरकार द्वारा पहल पहले ही की जा चुकी है। पिछले बजट मे व्यवस्था बनाई गई है कि मुद्रा नीति का निर्धारण को एक कमेटी बनाई जाएगी जिसमे तीन सदस्यो को केन्द्र सरकार नामित करेगी। मुद्रा नीति के निर्धारण मे सरकार की भूमिका का विस्तार हो ही रहा है।
सरकारी दखल के इस विस्तार को मुद्रा एवं टैक्स पालिसी के परिपेक्ष मे देखना होगा। मुद्रा पालिसी के अन्तर्गत निर्णय लिया जाता है कि रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दर कितनी रखी जाएगी तथा कितनी मात्रा मे नोट छापे जाऐंगे।
त्रत्रत्र टैक्स पालिसी के अन्तर्गत निर्णय लिया जाता है कि किस माल पर कितना टैक्स वसूल किया जाएगा और सरकारी राजस्व का उपयोग किस दिशा मे किया जाएगा।
अब तक की व्यवस्था मे मुद्रा पालिसी पर रिजर्व बैंक का एकाधिकार रहता था और टैक्स पालिसी पर वित्त मंत्रालय का। दोनो ही पालिसी के माध्यम से खपत एवं निवेश के बीच देश की आय का बटवारा किया जाता है।
मुद्रा पालिसी के अंतर्गत रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दर निर्धारित किए जाते है। इनमे कटौती की जा सकती है। ऐसा करने पर उद्योगो द्वारा ऋण फैक्ट्रियाँ लगाना आसान हो जाऐंगे। ऋण की इस मांग की पूर्ति के लिए रिजर्व बैंक अधिक मात्रा मे नोट छापे जाऐंगे।
नोट छापने से मंहगाई बढ़ेगी। मान लीजिए अर्थव्यवस्था मे 100 रुपए के नोट प्रचलन मे हैं। रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दर घटाने से मुद्रा की मांग बढ़ी और रिजर्व बैंक ने 10 रुपए के अतिरिक्त नोट छाप कर अर्थव्यवस्था मे डाल दिए।
अर्थव्यवस्था मे स्टील, सीमेंट, गेहूँ आदि माल पूर्ववत उपलब्ध है। पूर्व मे उपलब्ध माल को खरीदने को 100 रुपए के नोट अर्थव्यवस्था मे घूम रहे थे।
अब 110 रुपए के नोट घूमने लगे जैसे उतने ही माल को खरीदने को अधिक संख्या मे ग्राहक उपस्थित हो गए। इससे मंहगाई बढ़ी। तदानुसार सभी नागरिकों को मंहगा स्टील तथा गेहूँ खरीदना पड़ा।
अंतिम परिणाम रहा कि फैक्ट्रियों मे निवेश बढ़ा तथा नागरिकों की खपत घटी। विशेष यह कि निवेश पहले बढ़ा और खपत बाद मे घटी।
टैक्स पालिसी का प्रभाव भी ऐसा ही होता है। मान लीजिए सरकार ने स्टील पर अतिरिक्त एक्साइज ड्यूटी आरोपित कर दी। बाजार मे स्टील मंहगा हो गया।
नागरिको को मंहगा स्टील खरीदना पड़ा। उन्होंने मकान मे अतिरिक्त कमरा बनाने का कार्यक्रम स्थगित कर दिया। नागरिक की खपत मे कटौती हुई।
वसूले गए टैक्स से सरकार ने उद्यमियों को सब्सीडी दी। इससे उद्योग लगाना सुलभ हो गया। निवेश बढ़ा। अंतिम परिणाम पूर्ववत रहा। नागरिकों की खपत कम हुई और उद्यमियों द्वारा निवेश अधिक हुआ।
विशेष यह कि नागरिक की खपत पहले कम हुई और निवेश बाद मे बढ़ा। स्टील पर टैक्स बढ़ाने के साथ मंहगाई मे तत्काल वृद्धि हुई। इस रकम से बाद मे सब्सीडी दी गई। तब निवेश मे वृद्धि हुई।
मुद्रा पालिसी की एक ओर विशेषता है। नोट छापने के कारण बढ़ी महंगाई का प्रभाव सम्पूर्ण जनता पर लेकिन हलका पड़ता है।
देश के हर नागरिक को हर वस्तु के दाम मे मामूली बढ़त को झेलना पड़ता है जैसे सूर्य द्वारा तालाब से पानी धीरे-2 एवं सब ओर से उठाया जाता है उसी तरह नोट छापने से हर नागरिक पर धीरे-2 दबाव बढ़ता है। टैक्स पालिसी की एक और समस्या है।
इसका दुष्प्रभाव नागरिको के विशेष वर्ग पर एवं तीखा पड़ता है। जैसे स्टील मंहगा हो गया तो मकान बनाने वाले को अधिक मूल्य देना होगा परन्तु झुग्गी मे रहने वाले पर प्रभाव नही पड़ेगा।
जाहिर है कि मुद्रा नीति तथा टैक्स नीति दोनो का अंतिम प्रभाव समान होता है। दोनो ही पालिसी के माध्यम से देश की आय के खपत एवं निवेश मे बँटवारे को बदला जा सकता है।
अंतर यह है कि मुद्रा पालिसी मे निवेश पहले बढ़ता है जबकि टैक्स पालिसी मे बाद मे बढ़ता है। दूसरा अंतर है कि मुद्रा पालिसी का प्रभाव सर्वव्यापी होता है जबकि टैक्स पालिसी का प्रभाव वर्ग विशेष पर पड़ता है।
संभव है कि दोनो पालिसी मे अंतविरोध पैदा हो जाए। जैसे सरकार द्वारा निवेश बढ़ाने के लिए स्टील पर टैक्स बढ़ाया गया और उद्योगों को सब्सीडी दी गई। लेकिन उसी समय रिजर्व बैंक ने ब्याज दरे बढ़ा दी।
इससे उद्योग के लिए ऋण लेना कठिन हो गया। सरकार द्वारा दी गई सब्सीडी से उद्योगों को जो प्रोत्साहन मिला वह ब्याज दर मे वृद्धि से निष्प्रभावी हो गया।
वित्त मंत्रालय की पालिसी निष्प्रभावी हो गई। वित्त मंत्रालय चाहता है कि इस प्रकार के अंतर्विरोध पैदा न हों इस लिए मुद्रा पालिसी को भी अपने अधिकार मे लाना चाहता है।
लेकिन मुद्रा एवं टैक्स पालिसी के समन्वय मे खतरा भी है। मान लीजिए चुनाव नजदीक हैं। सत्तारूढ़ सरकार वोटर को प्रसन्न करना चाहती है। ऐसे मे सरकार द्वारा टैक्स दर मे कटौती की गई जिससे नागरिक को राहत मिले ओर वह सत्तारूढ़ पार्टी को वोट दे।
टैक्स दर मे कटौती से सरकार के राजस्व मे गिरावट आई। सरकार को वोट मिले परन्तु अर्थव्यवस्था चौपट हो गई। ऐसे समय मे रिजर्व बैंक की स्वायत्तता से हमें सरकार की इस गलत नीति से छुटकारा मिल सकता है।
रिजर्व बैंक ब्याज दर मे कटौती कर दे तो सरकार की गलत नीति निष्प्रभावी हो जाएगी।
रिजर्व बैंक की स्वतंत्रता के लाभ हानि दोनो हैं। वित्त मंत्रालय सही दिशा मे चल रहा हो रिजर्व बैंक की स्वायत्तता नुकसान देह हो सकती है। वित्त मंत्रालय गलत दिशा मे चल रहा हो तो वही स्वायत्तता लाभप्रद हो सकती है।
वित्त मंत्रालय तथा रिजर्व बैंक के बीच इस तनातनी मे मूल विषय पीछे छूट जाता है। अर्थव्यवस्था का संचालन इस प्रकार होना चाहिए कि निवेश भी बढ़े और नागरिक को माल भी सस्ता मिले।
यह दोनो उद्देश्य साथ-2 हासिल हो सकते है यदि सरकार की खपत मे कटौती करके उद्योगों को सब्सीडी दी जाए।
असल मुद्धा है कि सरकार की आय का उपयोग सरकारी कर्मियों को बढ़े हुए वेतन देने के लिए किया जाएगा अथवा उद्योगों केा बढ़ावा देने के लिए। इस मूल मुद्धे पर रिजर्व बैंक की तनिक भी दखल नही है।
वित्त मंत्री को चाहिए कि सरकारी खपत मे कटौती तथा निवेश मे वृद्धि की पालिसी बनाऐं। वह मूल पालिसी सही रहेगी तो रिजर्व बैंक की स्वतंत्रता का लाभ ही होगा।