सगर माला का औचित्य
डा. भरत झुनझुनवाला
केन्द्र सरकार ने गंगा पर इलाहबाद से हल्दिया तक जहाज चलाने का निर्णय लिया है। इस मन्तव्य को लागू करने के लिए एक जहाज पटना से रामनगर के लिए रवाना हुआ था। जहाज को बनारस मे राजघाट पर राज्य के जंगल विभाग ने रोक लिया है। लेख लिखते समय जहाज यहाँ रूका हुआ है।
राजघाट से रामनगर तक की 10 किलो मीटर की दूरी को कछुओं के संरक्षण के लिए कछुआ सेंचुरी घोषित किया गया है। वन विभाग का कहना है कि कछुआ सेंचुरी मे बड़े जहाज को चलाने से कछुओं को नुकसान होगा। यूँ तो बात छोटी सी दिखती है।
अनेक विद्वानो का मत है कि कछुओं को बचाने के नाम पर देश के आर्थिक विकास को नही रोकना चाहिए। मान्यता है कि गंगा पर जहाज चलाने से ढुलाई का खर्च घटेगा और देश समृद्ध होगा। लेकिन वास्तविकता इसके विपरीत है। पानी के जहाजों से ढुलाई सस्ती नही पड़ती है।
गंगा को जलमार्ग मे बदलने की योजना को अमरीका मे मिसीसिप्पी नदी की तर्ज पर बनाया गया है। यह नदी अमरीका के उत्तरी राज्यो से गेहूँ आदि को दक्षिणी तट पर स्थित बंदरगाहों तक पहुँचाती है। लेकिन इस नदी पर ढुलाई का अनुभव सुखद नही रहा है। पहली समस्या है कि सूखे के समय नदी मे पानी कम हो जाता है। पानी कम होने से जहाजरानी के लिए उपयुक्त नदी की चैड़ाई कम हो जाती है। नदी मे पानी अधिक होने से जहाज 100 मीटर की चैड़ाई मे चल सकते है। पानी कम होने से 50 मीटर की चैड़ाई मे ही उपयुक्त गहराई का पानी उपलब्ध होता है।
जैसे सिंगल लाइन की रेल टेªक पर रेलगाड़ी एक दूसरे को स्टेशन पर ही पार करती है ऐसी ही स्थिति मिसीसिप्पी जलमार्ग की हो जाती है। एक जहाज रूक कर दूसरे को पास देता है। इससे ढुलाई मे समय एवं खर्च दोनो ज्यादा आते है। रेल तथा रोड की तुलना मे जलमार्ग जलवायु पर ज्यादा निर्भर रहता है इसलिए स्थाई नही होता है।
नदी से ढुलाई सस्ती भी नही पड़ती है। देश की संसदीय कमेटी के सामने नेशनल थर्मल पावर कार्पोरेशन ने कहा था कि रेल की तुलना मे जलमार्ग से ढुलाई मामूली ही सस्ती पड़ती है चूँकि ढुलाइ एक तरफ होती है। नेशनल थर्मल पावर कार्पोरेशन के अनुसार जहाजों को इलाहबाद से हल्दिया को वापसी ढुलाई के लिए माल नही मिलता है। इन्हे खाली जाना पड़ता है। इसलिए ढुलाई का यह मार्ग सस्ता नही पड़ता है। इसी तर्ज पर इनलैंड वारटरवे अथारिटी कमेटी के सामने कहा था कि नदी मे ढाई मीटर से अधिक पानी होने पर नदी से ढुलाई सस्ती पड़ती है परन्तु इससे कम होने पर ढुलाई ज्यादा पड़ती है।
ज्ञात हो कि इलाहबाद से बनारस तक वर्तमान मे पानी की गहराई डेढ़ मीटर रह जाती है अतः इस क्षेत्र मे जलमार्ग सफल होने मे संदेह है। गंगा से सिंचाई के लिए उत्तरोतर अधिक पानी निकाला जा रहा है। इसलिए आने वाले समय मे जलस्तर के और घटने की संभावना है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण भी वर्षा के पैर्टन मे परिवर्तन होने को है। अनुमान है कि अधिक मात्रा मे वर्षा कम समय मे होगी ऐसे मे गर्मी के माह मे गंगा मे पानी का स्तर कम रहेगा।
केन्द्र सरकार ने पूर्व मे योजना बनाई थी कि इलाहबाद से पटना के बीच बराज बनाकर गंगा को 4-5 बड़े तालाबों मे तब्दील कर दिया जाएगा। लेकिन जनता के विरोध के कारण सरकार को पीछे हटना पड़ा। वर्तमान योजना है कि बराज नही बनाए जाऐंगे। इसके स्थान पर नदी की बालू को हटाकर एक संकरा ऐवं गहरा चैनल बना दिया जाएगा। इस चैनल मे जहाज चलाए जाऐंगे। वर्तमान मे नदी फैल कर बहती है। कहीं एड़ी तक का पानी होता है तो कही डूब जाने लायक। डेªजिंग करनेे के बाद पूरा पानी सिमट कर एक चैनल मे समा जाएगा। जो जीव जन्तु छिछले पानी मे जीते थे वे मर जाऐंगे।
इस दृष्टिकोण को अपनाते हुए केरल राज्य ने संसदीय समिति के सामने कहा था कि ‘‘गहराई बढ़ाने के लिए नदी मे डेªजिंग करना पर्यावरण के लिए हानिकारक होगा। नदी के मुँह पर समुद्र का खारा पानी अधिक मात्रा मे प्रवेश करेगा। मछलियों के प्रजनन पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा।‘‘ ज्ञात हो कि कई मछलियाँ छिछले पानी मे अंडे देती है। छिछला पानी उपलब्ध न होने पर उनका प्रजनन चक्र अवरूद्ध हो जाता है।
गंगा से सिंचाई के लिए पानी निकालने एवं फरक्का बराज बनाने का पहले ही मछलियों पर भयंकर दुष्प्रभाव पड़ चुका है। सेन्ट्रल इनलैंड फिशरीज़ इन्स्टीट्यूट कोलकाता ने इस दुष्प्रभाव की पुष्टि की है। पूर्व मे इलाहबाद तक हिलसा मछली पाई जाती थी। फरक्का बराज बनने के कारण समुद्र से चलने वाली हिलसा फरक्का के आगे नही पहुँच रही है, उसका आवागमन अवरूद्ध हो गया है और अब यह केवल गंगा के निचले हिस्से मे पाई जाती है। उपरी हिस्सों मे भी मछुआरों का धंधा चैथाई रह गया है चूँकि गंगा मे पानी कम है और मछलियाँ नरोरा के ऊपर तथा फरक्का के नीचे आवागमन नही कर पा रही है। जो मछली बची है वह डेªजिंग से समाप्त हो जाएगी।
नदी के पानी को साफ रखने मे मछली का बहुत महत्व है। यह कूड़े को खाकर पानी को साफ कर देती है। जलमार्ग बनाने के लिए डेªजिग की जाएगी जिससे मछलिी मरेगी और गंगा का पानी दूषित होगा।
जलमार्ग योजना वास्तव मे देश के प्राकृतिक संसाधनो को आम आदमी से छीन कर अमीर तक पहुँचाएगी। इस योजना से मछली मरेगी। मछुआरे मरेंगे। पानी दूषित होगा। आम आदमी गंगा मे स्नान ज्यादा करता है। उसका सुख जाता रहेगा। योजना का लाभ अमीरों को पहुँचेगा।
वर्तमान मे जलमार्ग का विकास करने का मुख्य उद्देश्य आयातित कोयले को हल्दिया बंदरगाह से इलाहबाद मे बनने वाले थर्मल पावर प्लांट तक पहुँचाने का है। आयातित कोयला पटना तथा इलाहबाद के पास लगे बिजली प्लांटो तक आसानी से पहुँच सकेगा। इनसे बनी बिजली सस्ती पड़ेगी। बिजली की खपत अमीरो द्वारा ही ज्यादा की जाती है। सस्ती बिजली के उपयोग से जो माल बनाया जाता है वह भी अधिकतर अमीरो द्वारा ही खरीदा जाता है।
इस प्रकार जलमार्ग के विकास से नदी को गरीब से छीन कर अमीर को दिया जा रहा है। मामला नदी को गरीब से छीन कर अमीर को देने का है। प्रधानमंत्री मोदी ने सत्तारूढ़ होने के बाद कहा था कि गंगा से कुछ लेना नही है, केवल देना है। उनकी सरकार द्वारा गंगा से ली जा रही है मछली और आम आदमी का गंगा स्नान का सुख, दिया जा रहा है बड़े जहाज।
डा. भरत झुनझुनवाला देश के जानेमाने स्तम्भकार हैं । इस लेख में दिए गए बिचार उनके निजस्व हैं ।
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