यूपी में अखिलेश की राह आसान नहीं,रिपोर्ट कार्ड खराब
अनिल विभाकर
यूपी की अखिलेश सरकार का रिपोर्ट कार्ड ठीक नहीं है। उनकी सरकार में सपा के नेता और कार्यकर्ता खुलेआम लूटखसोट, दबंगई और भ्रष्टाचार कर रहे हैं।
अखिलेश सरकार या तो ऐसा करने वालों पर कार्रवाई नहीं करती या उन्हें सरकार का संरक्षण मिला हुआ है।विधान सभा चुनाव नजदीक है। सवाल यह है कि इस खराब रिपोर्ट कार्ड के कारण सपा यूपी में फिर सत्ता में वापस आ पाएगी?
राजधानी लखनऊ में पिछले दिनों पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चंद्रशेखर की पुण्यतिथि पर आयोजित समारोह में खुद सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश सरकार के रिपोर्ट कार्ड पर चिंता जताई।
मुलायम अखिलेश सरकार के खराब रिपोर्ट कार्ड के कारण काफी सहमे हुए हैं। उन्हें लगता है कि उनके कार्यकर्ताओं का रवैया यदि ऐसा ही रहा तो अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी सत्ता से बाहर हो जाएगी।
मुलायम ने अपने कार्यकर्ताओं को लूटपाट,दबंगई,जमीन कब्जा और रंगदारी बंद करने की नसीहत दी । मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की मौजूदगी में उन्होंने कहा कि सपा नेता और कार्यकर्ता अपना आचरण सुधारें नहीं तो पार्टी सत्ता में वापस नहीं आ पाएगी।
मुलायम इससे पहले भी लगभग इसी तरह की नसीहत अपने कार्यकर्ताओं को दे चुके हैं मगर इसका असर उनपर नहीं हुआ।उनके इस वक्तव्य से यह साफ हो गया कि अखिलेश यादव की सरकार में उत्तरप्रदेश में अराजकता का माहौल है।
उनकी सरकार में आम लोग बेहद परेशान हैं जिसकी वजह कोई और नहीं,उनकी पार्टी के ही नेता और कार्यकर्ता हैं। इसका अर्थ यह भी है कि अखिलेश सरकार में पुलिस और अधिकारी आम लोगों के साथ ज्यादती कर रहे सपा से जुड़े अपराधियों पर कोई कार्रवाई नहीं करते।
पुलिस और अधिकारी कार्रवाई उन्हीं पर करते हैं जिन्हें सपा और अखिलेश सरकार का संरक्षण नहीं।
समाजवादी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं पर जमीन कब्जाने, दबंगई,भ्रष्टाचार और रंगदारी के आरोप यदि विपक्ष लगाता तो और बात थी मगर यह बात तो खुद पार्टी सुप्रीमो ने कही इसलिए यह बेहद गंभीर बात है।
कैराना से हिंदुओं के पलायन को भी इस संदर्भ में देखा जाना चाहिए। वहां से पिछले कुछ सालों में इन्हीं वजहों से बड़ी संख्या में हिंदुओं का पलायन हुआ है जिसे अखिलेश सरकार और भाजपा विरोधी वे सभी दल ,जो अल्पसंख्यकों के वोट के लिए तुष्टिकरण की राजनीति करते हैं,झूठ करार दे रहे हैं।
कैराना में भी तो लूटपाट,रंगदारी, दबंगई और जमीन कब्जा करने के लिए सुनियोजित अपराध की वजह से ही वहां से बड़ी संख्या में लोगों का पलायन हुआ। मथुरा कांड क्या था?
मुलायम सिंह ने अपने कार्यकर्ताओं को जो नसीहत दी उससे अखिलेश सरकार की कलई खुल गई। मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल के सपा में विलय को खारिज कराने से मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की जो छवि बनी थी वह मुलायम सिंह के इस ताजे वक्तव्य से बेमानी हो गई।
इससे तो यही लगता है कि अखिलेश ने मुख्तार अंसारी को सपा से भले बाहर रखा मगर उनकी सरकार में कई मुख्तार सपा में ही पैदा हो चुके हैं जिनसे प्रदेश की आम जनता त्राहि-त्राहि कर रही है।
दरअसल मुलायम को अखिलेश सरकार के जनविरोधी रवैए और पार्टी कार्यकर्ताओं के आपराधिक आचरण के कारण सपा की सरकार में वापसी की संभावना नहीं नजर आ रही । इसलिए वे परेशान होकर अपने कार्यकर्ताओं को आचरण सुधारने की नसीहत दे रहे हैं।
अगले साल विधानसभा का चुनाव होना है जिसमें पार्टी की विजय सुनिश्चित करने के लिए उन्होंने आजम खां के विरोध के बावजूद अमर सिंह को पार्टी में शामिल कर उन्हें राज्य सभा में भेजा और मुस्लिम वोट साधने के लिए बाहुबली मुख्तार अंसारी व उनकी पार्टी का सपा में विलय कराया था।
अमर सिंह की सपा में वापसी तो आसानी से हो गई मगर अखिलेश यादव ने मुख्तार को बुरी तरह बेइज्जत कर चार दिन में ही साइकिल से उतार दिया। बसपा सुप्रीमो मायावती इसे अखिलेश यादव का एक नाटक बताती हैं। बात भी सही है।
सवाल है अखिलेश यादव को अपनी छवि की इतनी ही चिंता है तो उन्होंने पूर्ण बहुमत रहते के बावजूद सरकार बनाते वक्त निर्दलीय विधायक कुख्यात राजा भैया को अपने मंत्रिमंडल में क्यों शामिल किया था?
काफी फजीहत और किरकिरी होने के बाद राजा भैया को उन्हें कैबिनेट से हटाना पड़ा था। इस समय राजा भैया जेल की हवा खा रहे हैं। अगर अखिलेश यादव इतने ही पाक- साफ छवि वाले हैं तो सपा के हजारों नेताओं और कार्यकर्ताओं को लूटपाट, भ्रष्टाचार और जमीन कब्जा करने की छूट कैसे मिल गई?
वे उत्तर प्रदेश की दूसरी सबसे बड़ी आबादी यानी मुसलमानों के वोट के लिए उनलोगों के अन्याय और अपराधों को नजरअंदाज क्यों करते रहे? सपा के युवराज को अगले विधानसभा चुनाव में इन सवालों का हिसाब देना होगा।
इन्हीं वजहों से अखिलेश सरकार से वहां के आमजन का मोह भंग हुआ है। इस हकीकत को समझ कर ही मुलायम ने अपने कार्यकर्ताओं को आचरण सुधारने की सरेआम नसीहत दी।
अखिलेश सरकार की इस विफलता से बहनजी यानी बसपा सुप्रीमो मायावती काफी उत्साहित थीं मगर स्वामी प्रसाद मौर्य ने अचानक पार्टी से इस्तीफा देकर उनके इस उत्साह पर पानी फेर दिया।
मौर्य मजबूत जनाधार वाले दलित नेता हैं जिसका फायदा मायावती को मिलता रहा है। वे मायावती के काफी विश्वस्त भी थे इसलिए बहनजी ने उन्हें विधानसभा में विपक्ष का नेता भी बनाया था। उनके पार्टी छोड़ने से मायावती इस कदर परेशान हैं कि उन्होंने मौर्य को गद्दार तक कह डाला।
पलटवार करते हुए मौर्य ने उन्हें महागद्दार कहते हुए बहनजी को दलित नहीं बल्कि दौलत की बेटी कहा। बहनजी भी कहां चुप रहने वाली थीं। उन्होंने फिर कहा कि बसपा छोड़ने या पार्टी से निकाले जाने वालों का राजनीतिक करियर समाप्त हो जाता है। जवाब में मौर्य ने कहा मायावती अब कभी प्रदेश की मुख्यमंत्री नहीं बन पाएंगी।
राजनीति क्या होती है यह मैं उन्हें सिखा दूंगा। मौर्य अबतक किसी पार्टी में शामिल नहीं हुए हैं। वे भाजपा नताओं से भी मिल चुके हैं और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से भी। पता नहीं कौन दल उन्हें अपने तुरुप का पत्ता बनाता है।
सभी दल शतरंज की बिसात पर अपने मोहरे बिछाने में लगे हैं। भाजपा ने अपनी सक्रियता वहां बढ़ा दी है। अमित शाह लगातार वहां सभाएं कर रहे हैं। वे अतिदलित और अतिपिछड़ों को एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं।उत्तर प्रदेश में 80 में से 73 सांसद भाजपा के हैं।
इसलिए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव जीतना भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न है। केंद्र की ढाई साल की मोदी सरकार के कामकाज का भी इस चुनाव पर असर पड़ेगा। वैसे हाल में हुए पांच विधानसभाओं के चुनाव में मिली अच्छी सफलता से भाजपा काफी उत्साहित है।
मुलायम सिंह यादव ने हाल में अपने कार्यकर्ताओं को आचरण सुधारने की जो नसीहत दी उससे भाजपा के साथ ही अन्य दलों को भी अखिलेश सरकार पर हमला करने का एक नया मौका मिल गया है।
जहां तक कांग्रेस की बात है , हकीकत यह है कि पिछले दो-तीन दशक में उत्तर प्रदेश में उसका जनाधार काफी घटा है। दिक्कत यह है कि कांग्रेस एक परिवार विशेष की परिक्रमा की मानसिकता से अब तक उबर नहीं सकी है।
इसके कारण कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं में आत्मविश्वास खत्म हो चुका है। कांग्रेस के बुजुर्ग नेताओं से लेकर युवा कार्यकर्ताओं तक को लगता है कि गांधी परिवार के किसी व्यक्ति के नेतृत्व के बिना वे चुनाव जीत ही नहीं सकते।
पार्टी ने राहुल गांधी को तुरुप का पत्ता समझ कर उन्हें आगे किया था मगर राहुल चल नहीं पाए। अब पार्टी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में प्रियंका गांधी को उतारने जा रही है। समय बताएगा कि इसका फायदा उसे कितना मिलता है।
दरअसल कांग्रेस अब तक यह समझ नहीं सकी कि जनता की सोच बदल चुकी है। देश की जनता को लाख कुशासन के बावजूद दीदी,अम्मा और बहनजी की सरकार तो पसंद है मगर उसे रानी-महारानी की सरकार कतई कबूल नहीं।
इस हकीकत को उसे समझना होगा। देखना यह है कि उत्तर प्रदेश में राजनीति क्या करवट लेती है। बहरहाल इस रिपोर्ट कार्ड के आधार पर अखिलेश सरकार की पुन: वापसी की राह आसान नहीं लगती।